Thursday 25 December 2014

खुश्बूओं में खो रहे हैं
मुहब्बतो में जो रहे हैं

आज मिला है तू बमुश्क़िल
बस आँखों को धो रहे हैं

किसके हो तुम न जाने
हम तुम्हारे हो रहे हैं

है मुझमें मेरी अना मगर
मुद्दत से हम दो रहे हैं

मुझसे ना बरसो कटेंगे
काँटे ऐसे बो रहे हैं

खानेवाले मेहनत की
गहरी नींदें सो रहे हैं

क़रीब से जाना है तुझे
तेरे हम भी तो रहे हैं

रहते गुम सुम जो लोग 'सरु'
बोझ किसी का ढो रहे हैं


http://www.yoindia.com/shayariadab/ghazals/ham-tumhaare-ho-rahe-hainsaru142-t118394.0.html

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