Monday 5 January 2015

प्यास का मतलब ये पानी ही समझते हैं
बात  दुनियाँ  वाले पुरानी ही समझते हैं

रोज़  मरते हैं जीने की ख्वाहिश में लोग
यहाँ मौत को भी ज़िंदगानी ही समझते हैं

बात हक़ की थी तो वो तलवार हो गये
लोग  फ़र्ज़  को परेशानी  ही समझते हैं

कशिश नहीं कोई कसक़ नहीं जिसमे ऐसी
ज़िंदगी  को  हम  बेमानी ही समझते हैं

नज़र  ना  पहचानें या अंजान हैं इनसे
दिल की बातें भी ज़बानी ही समझते हैं

चाँद  को   देखा है   उन्होनें  क़रीब से
आज भी  इसे हम  कहानी ही समझते हैं

क्या हुआ गर बसा लिया घर परदेस में'सरु'
अपने दिल को हिन्दुस्तानी ही समझते हैं

 

Pyaas ka matlab ye paani hi samajhte haiN
Baat duniaN wale puraani hi samajhte haiN

Roz marte haiN jeene ki khwahish meiN log
YahaN maut ko bhi zindagaani hi samajhte haiN

Baat haq kit hi to vo talwaar ho gaye
Log farz ko pareshaani hi samajhte haiN

Kashish nahiN koi kasaq nahiN jisme aisi
Zindagi ko ham bemaani hi samajhte haiN

Nazar na pehchaane ya anjaaN haiN inse
Dil ki baatein bhi zabaani hi samajhte haiN

Chand ko dekha hai unhone qareeb se
Aaj bhi ise ham kahaani hi samajhte haiN

Kya hua gar basa liya ghar pardes meiN ‘saru’
Apne dil ko Hindustaani hi samajhte haiN

 
शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों
दिल कहता है ज़िंदगी- ज़िंदगी सी है इन दिनों

कोई  राह  नज़र  आई  है  बाद-ए-मुद्दत  मुझे
बुझे चराग़  में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों

दिल  की  गहराइयों  में कुछ  टूटा तो ज़रूर है
हर  बात मिरी शायरी- शायरी सी है इन दिनों

जैसे तो  यहीं  पर मुस्तक़िल रिहाइश कर ली है
यूँ लबोंपे तबस्सुम खिली-खिली सी है इन दिनों

इधर सज़्दे में सर  झुका उधर  वो  तड़प उठठा
यूँ  लगता  है  बंदगी- बंदगी  सी  है  इन दिनों

बना  ले घर  ए परिंदे गम  के सूखे तिनकों से
कुछ ज़माने की हवा रुकी- रुकी सी है इन दिनों

सही  कौन  है  जहाँ में  और ग़लत कौन नहीं है
इन्हीं सवालों में 'सरु' घिरी-घिरी सी है इन दिनों
तूने ही आतिश-ए-ईश्क़ लगाई मैने  कब  चाही
सोये समंदर  में लहरें  उठाई  मैने  कब  चाही

उठ गया कारवाँ  ख्वाबों का हसरतें ताक़ती रहीं
उठी  क्यूँ सजी  महफ़िल सफाई मैने कब चाही

अदाएँ दिलरुबना अंदाज़ दिलनशीं थे साहिल के
कश्ती-ए-तक़दीर  वहाँ  न आई  मैने कब चाही

रिश्ता -ए- वफ़ा तोड़ दिया  जब  चाहा और दी
जहाँ  भर के  रिश्तों की  दुहाई मैने  कब चाही

बहुत लगता था की मुश्किलें आसां होंगी संग तेरे
मुश्किलों ने सरहदें और भी बढ़ाई  मैने कब चाही

मुझे मालूम न था तू खंजर भी चलाएगा दिलपर
अता जो की  तुझे वफ़ा बेवफ़ाई मैने कब चाही

लफ्ज़ गहरे नहीं रखते अपने उँचा बोलते हैं जो'सरु'
या  खुदा  ऐसे  लोगों  से  मिलाई मैने कब चाही
वो  जबां  पर कहकहों का आलम रखते हैं
दिल के मौसम में हर दिन सावन रखते हैं

आसमाँ  को  छूने  वाले परबत भी  यहाँ
दिल  में  लहरें आँखों में सागर  रखते हैं

हो जाता है ख़ामोश हर शख़्स महफ़िल में
इस क़दर बोलने की वो लियाक़त रखते हैं

कैसे  गुज़रे   हवा  भी   इनसे  मिले  बग़ैर
हर रंग से महका चमन का दामन रखते हैं

एहसास से भरा है दिल बहुत नाज़ुक  इनका
ये जबां पर  शेर  दिल  में  शायर  रखते हैं

बहार  भी  आती  है उन्हीं  फूलों पर जो
सबके लिए लबों पर  मुस्कुराहट रखते हैं

दिल पर नहीं शिक़ायत पानी पर लिखते हैं
हाथ  सबसे  दोस्ती  का  बढ़ाकर रखते हैं

गीत ये ग़ज़ल ये  भीगी पलकों  का सलाम
आपके   लिए  बेशुमार  चाहत  रखते  हैं.

अदा ये ज़माने से जुदा सिखा दो 'सरु'को
हसीन पहलू  ही  बात  का बाहर रखते हैं
ख़्वाब  मेरी  आँखों  के  न बिखरने देगा
अपने दिल की इक रोज़ मुझे करने देगा

मेरा   यकीं  है  अगर  चाँद  पूरा  है तो
क्यूँ  शब  में  समंदर  वो  उतरने  देगा

अच्छा  होता  है फूलों का मिलते रहना
वर्ना  खुश्बू इधर से  कौन गुजरने देगा

उसी  शख़्स  के  ख़यालों में दरिया होगा
जो  तिश्नगी  को ज़हन  में उतरने देगा

ज़िंदगी यूँ ही जीते हैं की मर जाएँ मगर
पूरी  तरह  से  कोई   नहीं   मरने  देगा

हुनर रखो कोई  ऐसा  की दबा दो सबको
यूँ  दुनियाँ  में  तुम्हें  कौन उभरने देगा

क़ायनात  की  हर  शै सफ़र  है तो फिर
तुझको 'सरु' कौन  इक जगह ठहरने देगा







Khwaab meri aankhoN ken a bikharne dega
Apne     dil    ik    roz    mujhe   karne   dega

Mera yakeeN hai agar chaand poora hai to
Kyun  shab  meiN samandar vo utarne dega

Achha  hota  hai  phooloN  ka milte rehna
Verna khushboo idhar se kaun gujarne dega

Usi shakhs ke  khyaaloN  meiN dariya hoga
Jo  tishngi   ko  zehan  meiN utarne dega

Jindagi yun hi jeete haiN ki mar jaayeN magar
Poori  tarha  se  koi  nahiN  marne  dega

Hunar  rakho  koi   aisa  ki daba do sabko
Yun  duniaN  meiN tumheN kaun ubharne dega

Kaynaat  ki  har  shai  safar  hai  to fir
Tujhko ’saru’ kaun  ik jagha thaharne dega.
हसरतें  उठती  हैं  जज़्बात  मचल जाते हैं
वक़्त के  साथ  ऐसे रोज़  भी  ढल जाते हैं

यूँ  तो उठते हैं  ईश्क़  के  तूफान  दिल में
मगर एहतियात के दरिया  में जल जाते हैं

इस  बात  से बे -इंतेहाँ  हैरानी   है   मुझे
जाने  कहाँ  जानेवाले  आजकल   जाते  हैं

तदबीर  क्या  निकलेगी  मुश्क़िलों की यहाँ
कस्में- वादे चंद सिक्कों  में बदल जाते हैं

तेरी यादों के जब  फूल  महकते हैं दिल में
ज़िंदगी  के  झोंके  छू  के  निकल  जाते हैं

राह-ए-शौक़ में मुश्क़िलों ने हिम्मत सिवा दी
लोग  क्यूँ  ठोकरें  खाकर   संभल  जाते हैं

तू लाख पढ़ ले पोथियां  तज़रबे  रखे हज़ार
ये दुनियाँ वाले 'सरु' चाल  तो चल जाते हैं
वतन के बच्चे किधर जा रहे बताओ तो सही
मां-बाप  को कोई  रास्ता दिखलाओ तो सही

क़िताबों की दुनियां ने छीन लिया इनसे बचपन
ज़मीन-ए-हक़ीकत से आशना कराओ तो सही

क्यूँ  अंधेरों  में  भटकने  के  लिए छोड़ दिया
चराग़-ए-शब की तरहा जलना सिख़ाओ तो सही

गिरने  दो  चोट लगने दो खुद ही संभलने दो
दर्द  सहने  की  थोड़ी आदत बनाओ तो सही

रिश्तों की क़ीमत का इल्म क़िताबों से ना होगा
मौसी  मामा  चाचा  के घरों मे जाओ तो सही

घरोंदे  बनाने  से  ना  रोकना  नहला  देना
गीली  मिट्टी  की खुश्बुओं से महकाओ तो सही

ज़ह्न पर क़िताबों का सर पर छतों का बोझा है
स्याह रात  में  चाँद-तारे  दिखाओ  तो  सही

कार   क्या  खरीदी  पैरों  पर नहीं चलने देते
खुले  मैदानों  में  ज़रा  देर खिलाओ तो सही

ख़रीदकर  बाज़ार  सारा  दे  दिया तुमने 'सरु'
इन्हें  वक़्त  दो  मोहब्बत  से सजाओ तो सही


मेरी  लाडली  तेरा  महकना  आरज़ू  मेरी
तू जन्नत की हूर है मेरी आँखों  का नूर है
मेरी  लाडली  तेरा  महकना  आरज़ू  मेरी

तेरी किल्कारियों ने मुझको तराने सिखा  दिये
हज़ारों  रंग भरे ख़्वाब आँखों को दिखा  दिये
मेरी  लाडली  तेरा   चमकना  आरज़ू   मेरी
मेरी  लाडली  तेरा   महकना  आरज़ू   मेरी

मेरी ज़िंदगी  की खुशियों का  नुस्ख़ा तू ही  है
हर सिम्त हर वक़्त फूलों का सिलसिला तू ही है 
मेरी  लाडली  तेरा   चहकना   आरज़ू   मेरी
मेरी  लाडली  तेरा  महकना  आरज़ू     मेरी

हां हर चीज़ को छूकर परखना चाहती  है तू
हां अपने  फ़ैसलों पे  ठहरना  चाहती  है तू
मेरी  लाडली   तेरा   संवरना  आरज़ू मेरी
मेरी  लाडली  तेरा   महकना  आरज़ू  मेरी

तूने ही  जज़्बातों का साज़  बनाया  है मुझे
तूने ही  काबिल-ए-एजाज़  बनाया  है मुझे
मेरी  लाडली  तेरा   निखरना  आरज़ू मेरी
मेरी  लाडली  तेरा  महकना  आरज़ू   मेरी

नये ज़माने की  नई  रोशनी बनना  है  तुझे
आँधियों  में  ही दीया बन के  जलना है तुझे
मेरी  लाडली  तेरा   उभरना   आरज़ू  मेरी
मेरी  लाडली  तेरा  महकना   आरज़ू   मेरी
कारवान -ए- बहार  चलें
गर  तेरी  यादगार  चलें

सफ़र में अपने ख़ौफ़ का
करते  हुये  शिकार  चलें

हदें  रहें   ना  आसपास
हौसलों  की  बहार  चलें

अब  ज़ुलमतें  मिटानी हैं
एक  दो  नहीं हज़ार चलें

आ  इंसाँ बन  जायें फिर
जंग-ए- ज़िंदगी  हार चलें

मौसम  सी  बदले दुनियां
गुलों  के  संग  खार चलें

जी  भर  गया  संसार से
कुछ दिन को हरिद्वार चलें

पाप  क्या  है  पुण्य  क्या
दिल  का  बोझ उतार चलें

वक़्त को नहीं समझी 'सरु'
चलो  वक़्त  के  पार चलें







KarwaaN- E-bahaar  chaleiN
Gar  teri  yaadgaar  chaleiN

safar meiN  apne  khauf ka
karte huye shikaar chaleiN

hadeiN  na  raheiN aaspaas
Hausle   ki  bahaar  chaleiN

ab  zulmateiN  mitani haiN
Ik do nahiN hazaar chaleiN

Aa insaaN  ban  jayeN  fir
Jang-e-jindgi haar chaleiN

Mausam   si  badle   duniaN
GuloN ke sang khaar chaleiN

Jee  bhar  gayaa  sansaar se
Kuch din ko haridwar chaleiN

Paap   kya   hai   punya kya
Dil  ka  bojh  utaar chaleiN

Waqt  ko  naiN samjhi ‘saru’
Chalo  waqt  ke paar chaleiN
बज़म-ए-दुनियाँ से दूर कहीं ले चल
महकते  गुल का सुरूर कहीं ले चल

ख्वाहिश-ए-जन्नत है यार मुझे भी
इस  मोहब्बत का नूर कहीं ले चल

धड़कन  भी  दिल  में  जाना  मैनें
है उल्फ़त का दस्तूर  कहीं ले चल

गम की दौलत के मकां में शहर में
हैं  जीने  को  मजबूर कहीं ले चल

मूरत  हो  गये  वफ़ा  करने   वाले
यहाँ  बेवफा  मशहूर  कहीं ले  चल

अब  तो ये आलम है मज़बूरियों का
हैं तिरे ग़ म भी मंज़ूर कहीं ले चल

परवाज़ दे  अब  हसरतों को अपनी
'सरु' के हौसले भरपूर कहीं ले चल






Bazm- e-duniaN  se door kahiN le chal
Mehakte  gul ka suroor  kahiN le chal

Khwahish-e-jannat hai yaar mujhe bhi
Iss  mohabbat  ka  noor  kahin le chal

Dhadkan   bhi  dil  mein  jana  maine
Hai   ulfat   ka   dastoor  kahiN  le chal

Gham ki daulat ke makaaN meiN shahar meiN
HaiN  jeene  ko  majboor  kahiN le chal

Moorat   ho  gaye  wafa  karne wale
YahaN  bewafa mashhoor kahiN le chal

Ab  to ye  aalam  hai  majbooriyoN ka
Hain tere gham bhi manjoor kahiN le chal

Parwaaz   de  ab   hasratoN   ko  apni
‘saru’ ke hausle bharpoor kahiN le chal


तुम साथ हो तो  मेरा खुदा  हो खुदाई हो
जीने का सामां हो दिल  हो दिलरुबाई हो

ये  क्या  कि तुम  इल्ज़ाम दिए जाते हो
अच्छा है  सज़ा दे दो  क़ैद  हो  रिहाई हो

आज  अच्छा सा कुछ सुनाओ मेरे सनम
गीत  हो  ग़ज़ल  हो  ख़याल हो रुबाई हो

रोशन  सवेरे   हैं  कभी   रातों  के  अंधेरे
जैसे सनम ने चिलमन उठाई हो गिराई हो

दिल से निकली हुई  जा लगेगी वहाँ ज़रूर
रही हो  उफ़ या  आह  दुआ  हो  दुहाई  हो

बनाए हुए है यहाँ हर ज़ायक़ा अपनी कशिश
नमक  हो  नमकीन हो मीठा हो मिठाई हो

बयां हो गया आख़िर जो'सरु'-ए-दिल में था
दास्तां   उसने   चाहे  लिखी  हो  सुनाई  हो
इरादा -ए-वस्ल-ए-यार है मौसम  जैसा  भी हो
में  कुछ देर को जी लूं बाद-ए-हाल जैसा भी हो

मिले कुछ तो  सुक़ूं दिल  को बेरंग सी दुनियां में
हरसू  समां  हो  फूलों  का कभी तो ऐसा भी हो

नाकाफ़ी  है  बाप  होना आज के  इस  दौर  में
ये  ज़रूरी  हो  गया की  हाथों  में  पैसा भी हो

उसे  मान  ही  लेंगे  खुदा  शर्त  मगर इतनी है
हू-ब-हू न सही मगर हां कुछ कुछ तो वैसा भी हो

तज़र्बे  से  गर कुछ  जाना  तो  यही जाना मैने
हमसफ़र  हसीन  हो  चाहे  रास्ता  कैसा  भी हो

भूल  जाना  ही   है  यारो   जवाब - ए - बेवफ़ाई
क्या  ज़रूरी  है   के   जैसे   को   तैसा  भी  हो

किसका फसाना  नया है किसका जुदा है 'सरु' से
साँसों  की  तार  खींचता है  शख़्स  जैसा  भी हो





Irada- e-wasl –e-yaar  hai   mausam   jaisa  bhi  ho
MeiN kuch der to jee loon baad-e-haal jaisa bhi ho

Mile kuch to  sukooN  dil ko berang  si duniaN  meiN
Harsoo samaanN ho phooloN ka kabhi  to aisa bhi ho

Nakaafi  hai   baap  honaa   aaj  ke  iss  daur   meiN
Ye zaroori ho gaya hai ki haathoN meiN paisa bhi ho

Use  maan  hi  lenge  khuda   shart  magar  itni  hai
Hu-b-hu na sahi magar haaN kuch kuch to vaisa bhi ho

Tazarbe se  gar  kuch  jaanaa  to  yahi jaanaa  maine
Hamsafar  haseen  ho  chahe  raastaa  kaisaa  bhi  ho

Bhool  janaa  hi  hai  yaaro  jawaab-  e  - bewafaai
Kyaa   zaroori   hai   ke   jaise   ko   taisaa    bhi   ho

Kiska  fasaanaa  nayaa hai kiska juda  hai  ‘saru’ se
saansoN  ki  taar  kheechataa hai shakhs jaisa bhi ho

तेरी याद आज फिर चश्म-ए-तर  कर गई है
रवाँ   इक  कूज़े   से   समंदर  कर   गई  है

दबे-पाँव  चली  आई  इक  हसरत  दिल में
उजड़ी   हुई  बस्ती  को   शहर  कर  गई है

करती  हूँ  अता  शुक्रिया  हर  उस घड़ी का
तेरा  जलवा  जो  मेरी  नज़र  कर  गई है

सहारा  तो  लिया  या-खुदा  बेल  ने  मगर
उस  खंबे  को  देखिए शज़र   कर  गई  है

यूँ  गिरती  हैं  बिजलियाँ   आँखों  से  तेरी
बुझी  हुई  राख  को भी  शरर  कर  गई है

और  किसी  हालत का  अब  ख़ौफ़ क्या करें
मुफ़लिसी   जब  बाख़ूबी  बसर  कर  गई है

घड़ी  खुशियों  की  रही हो या गम की 'सरु'
किसके  यहाँ  क़यामत  तक  ठहर कर गई है




Teri yaad  aaj fir  chashm-e-tar  kar gai hai
RawaaN ek kooze  se samandar  kar gai hai

Dabe- paanw chali aai ek hasrat dil  meiN
Ujdee   hui   basti   ko  shahar  kar  gai hai

Karti hoon ata shukriya har uss ghadi ka
Tera jalwaa  jo   meri   nazar  kar gai hai

Sahara  to  liya ya  khuda  beil  ne  magar
Uss khambe ko dekhiye shazar kar gai hai

Yun girti haiN bijliyaN aankhoN  se teri
Bujhi  hui rakh ko bhi  sharer kar gai hai

Aur  kisi  haalat  ka ab khauf kya karein
Muflisi  jab  ba-khoobi basar kar gai hai

Ghadee  khushiyon rahi  ho  gham ki ‘saru’
Kiske yahan qayamat tak thahar kar gai hai
एक  ही  सवाल  के  हज़ारों  जवाब  मिलते हैं
हज़ार  जवाबों   में  लाखों   सवाल  मिलते हैं

बहुत मुश्किल से मिलता है यहाँ दिल किसी से
कहाँ  ज़माने  में  सभी  से  ख़याल  मिलते हैं

बहुत थकाया है खुद को गहरी नींदों की ख़ातिर
मुझको  तो  ख्वाबों  में  भी  ख्वाब  मिलते हैं

ख्वाहिशें   चाँद  पर  जाने  की   हैं  तो   सुनो
उसमें  भी   गड्ढे  तो  कहीं   पहाड़  मिलते  हैं

सुर में सुर मिल गया माना दिल भी महक गया
मिट्ठू   पालने  से   क्या  राज़दार   मिलते  हैं

आज  के  दौर में  हर  मर्ज़  की  दवा  है मगर
दिल  के रोग  तो  अब  भी लाइलाज़ मिलते हैं

ज़िंदा  इंसान   कोई  तो  दिखलाओ 'सरु' को
सजे- सँवरे   चलते- फिरते  मज़ार  मिलते  हैं




Ek  hi  sawaal  ke   hazaaroN    jawaab   milte   hain
Hazaar jawaaboN  mein laakhoN sawaal  milte hain

Bahut  mushkil   se  milta  hai  yahaan   dil   kisi  se
Kahan zamaane mein sabhi se  khayaal  milte hain

Bahut thakaya hai khud ko gehri neendoN ki khaatir
Mujhko to khwaaboN  mein  bhi khwaab  milte  hain

Khwahishein  chaand  par  jaane  ki hain  to suno
UsmeiN  bhi gaddhe  to  kahin  pahaad  milte hain

Sur mein sur mil gaya maanaa  dil  bhi  mehak gaya
Mitthoo   paalne  se  kyaa   raajdaar   milte  hain

Aaj ke daur  mein  har  marz  ki  dawaa hai magar
Dil  ke   rog   to    ab   bhi   la - ilaaj   milte   hain

Zindaa    insaaN     koi    to     dikhlao   ‘saru’    ko
Saje- sanware  chalte- firte - mazaar- milte  hain

दीवानगी   हद   में   रही   तो   मोहब्बत  कैसी
किसी हश्र-ओ-अंजाम से डरी तो मोहब्बत कैसी

छलक भी जाने दो इन आँखों के जाम अब तो
पलकों  में  छिपा  के रखी  तो मोहब्बत कैसी

रुसवाइयों के डर से जो  तर्क़-ए-वफ़ा  कर दी
ज़िंदगी  दिल  पे ना मिटी तो  मोहब्बत कैसी

तेरे तसव्वुर  से सजी  वो  तस्वीर-ए-ज़िंदगी
मिरे  रंग  में  ना  ढली  तो  मोहब्बत  कैसी

इक  बेदम   से   बहाने  से  तेरे   यार   मेरे
बेसबब  दुश्वरियाँ  सही  तो  मोहब्बत कैसी

करो वादा जब भी मिलें  भूल के जहाँ  मिलें
कुछ देर  भी तस्कीं  नही  तो मोहब्बत कैसी

'सरु'  की  ग़ज़ल  में  चर्चा तेरा ज़िक्र तेरा है
रहे  बात   वहीं  की  वहीं  तो  मोहब्बत कैसी
पुरानी   क़िताबों   से   धूल   झाड़ते  रहना
काग़ज़  पे लिखके  जज़्बात  फ़ाड़ते   रहना

बदलते   ही   रहते   हैं  ख़्याल  ज़माने  के
गर  बुरा  कुछ लगे तो  मिट्टी  डालते रहना

बिखरी   है  ज़माने  की   हवाओं  से  हरसू
मुसीबतों  को  गर्द  सा  बस  झाड़ते  रहना

मात-पिता हैं  ज़मीन- औ- आसमाँ ए बंदे
हर  पल  तुम  तैयार  उनके  वास्ते  
रहना 

खिज़ाओं  के  मौसम बिखर  न जाना कभी
ख़्वाब   ज़िंदगी   में   नये   पालते   रहना

आलसी  लोगों   की  है  आदत  ये   मशहूर
हो  काम  कैसा  भी  कल  पर  टालते रहना

जिंदगानी  ना  मिले शायद  देकर  जान  भी
तुम  दामन हौसले  का 'सरु'  थामते  रहना
घटायें  गर  करके हिसाब चली जाती
खिज़ाएं  होके   परेशान  चली  जाती

दीद गर हो जाती उस नूर-ए-नज़र की
इन बुझी आँखों की थकान  चली जाती

साज़  बिठाकर  गुनगुनाकर कही होती
दिल की गलियों में आवाज़ चली जाती

आ जाती गर वक़्त पे  बहार-ए-ख़्वाब
में लेकर महकता  गुलाब  चली जाती

भूले  से  ही सही आई तो है मोहब्बत
वरना  वो  मुझसे अंजान चली  जाती

रौनक है दो जहाँ की तुम से ही दिल में
ज़िंदगी बेसबब और  बेजान  चली जाती

काश के  खोले  होते  पंख  ख्वाबों ने
उनको 'सरु' देकर परवाज़ चली जाती
चल   ना   होली   खेलें   यार
आ   ख्वाब   रंगे   इस   बार

चल   खुदा   के  कर   दीदार
आज  गिरा   के   हर  दीवार

चल   पिचकारी   ऐसी   मार
चल  निकले  प्रीत  की   धार

चल    मना   होली   त्योहार
फूटे     रंगों     की    बौछार

चल फिर खुद में  देख निखार
मीठा    बोलो    करो    फुहार

चल  कुछ  आँखों  को  संवार
तू   देख   हर  रंग  में  प्यार

चल  चला  इस  तरहा  बयार
झनक  उठे  हर  दिल के तार

चल  बाहर   मत  देख  यार
भीतर   खुशियों  का   भंडार

चल माना 'सरु' ने सौ हज़ार
होली   सा  न  एक  त्योहार

 


Chal na holi khelein yaar
Aa khwaab rangen iss baar

Chal khuda ke kar deedaar
Aaj giraa  ke har deewaar

Chal pichkari  aisi  maar
Chal nikle preet ki dhaar

Chal manaa Holi tyohaar
Foote rangoN ki bauchhar

Chal fir khud meiN dekh nikhaar
Meetha   bolo  karo   fuhaar

Chal  fir  aankhoN ko sanwaar
Tu dekh har  rang  meiN  pyar

Chal chalaa iss tarha bayaar
Jhanak uthe  har dil ke taar

Chal baahar mat dekh yaar
Bheetar khushiyoN ka bhandaar

Chal mana ‘saru’ne sau hazaar
Holi   sa   na    ek   tyohaar
नहीं   नफ़रत  से  ये  मोहब्बत  से  डरा  जाय  है
दिल- ए-नादान हाय किस तूफ़ां  में घिरा जाय है

चाह का पत्थर उठाकर फैंक गया  कौन  या  रब
झील सा दिल  बेशुमार  लहरों  से  भरा जाय  है

खाते  हैं कसमें  साथ  जीने  मरने  की फिर  भी
जाने वाले  के पीछे  बता   कौन  मारा  जाय  है

दर्द  जैसा  लगे  उसे  दर्द  मिरा  तो   बात  बने
बिन  सोचे  समझे जालिम दिए मशवरा जाय है

लफ़्ज़ों  में गहराई गर  रखी  थी  तूने  तो  फिर
क्यूंकर इस तरहा बता जबां  से  फिरा  जाय  है

उलझते  ही  रहे  हैं  गम-ओ-खुशी के  धागे यूं
इस छोर से पकडूं तो हाथ से वो सिरा  जाय  है

क्यूँ उ म्मीद 'सरु'  बादल  से   लगाये   बैठी  है
जिसे खुद  हीं मालूम कि कहाँ सरफिरा जाय है

मोहब्बत के  शरर  का  नूर  है
पास है  खुशी   उदासी  दूर  है

ज़हन-ए-इंसान ही मयखाना है
जिसको   देखो  नशे  में  चूर है

फूलों कलियों की गलियों में भी
ख़ूबसूरती   उनकी   मशहूर  है

हुस्न की दुनियाँ  ग़ुलाम उसी की
ज़बान में   तहज़ीब-ओ-शऊर 
है 

सूरत  भी बहुत खूब  सीरत  भी
हां   वही   जन्नत  की   हूर  है

गम को आँसुओं से धो न सकी जो
वो आँख  भी  कितनी  मजबूर है

इल्म वो हुआ 'सरु' को  दर्द  से
अंधेरा   भी  गम  का  पूरनूर है
ख़ामोश    रहकर   बोलते  हैं  रंग  तस्वीर के
राज़ कितने  ही  खोलते  हैं   ढंग  तस्वीर  के

एक  उम्र  लगा  के आया है  परिंदा  मंज़िल पे
तंग आसमाँ   भी   रास्ते  हैं  तंग  तस्वीर के

आँखों  में  उतरा जाए है  हाय नशा  इस  क़दर
बहकी   अदाओं  से  चूर   हैं  अंग  तस्वीर के

बुलाओ बिजलियों को जला भी दे  आशियाँ  को
आलम-ए-बरसात में  अंग  हुए  भंग तस्वीर के

ये  हालात- ओ - ख़्यालात  भी  बदल  जाएँगे
उतार  पाएगा  क्या  कोई  जंग   तस्वीर  के

खो  न  जाए ये  रंग-ओ-बू  सदाओं  की तरह
दर – ओ - दीवार पे  सजालो  रंग  तस्वीर के

दिखाए हैं  नक्श-ए-पा आने  वाली  दुनियाँ  के
यूँ चराग़-ए-रहगुज़र रही 'सॅरू' संग तस्वीर  के



Khaamosh  rehkar  bolte  hain   rang  tasveer  ke
Raaz  kitne  hi  kholte   hain   dhang  tasveer  ke

Ik umra laga ke aaya hai parinda parinda manjil pe
Tang   aasmaaN  bhi  raaste  hain  tang  tasveer  ke

Aankhon meiN utraa jaye hai haye nasha  is kadar
Behki   adaaoN  se  choor  hain  ang  tasveer ke

Bulaao  bijliyon ko jalaa  bhi   de aashiyaN  ko
Aalam-e-barsaat  meiN  ang  hue bhang tasveer ke

Ye  haalaat- o -khyaalat  bhi   badal  jaayenge
Utaar  paayega   kyaa   koi    jang   tasveer  ke

Kho  na  jaye  ye  rang-o-boo sadaaoN ki tarha
Dar-o-deewar   pe  sajaa  lo   rang   tasveer  ke

Dikhaaye  hain naksh-e-paa aane  wali dunian ke
Yun charaagerehgujar rahi ‘saru’sang tasveer ke
बहकने की बात थी कुछ संभलने का इशारा था
ज़रा खुल के बतलाओ क्या मतलब तुम्हारा था

मानिंद सूखे पत्ते के हम साथ हवा के हो लिये
लगा उन लम्हों में ज़िंदगी ने हमें  पुकारा  था

रास्ता  खुदा  जाने  कब  बदल लिया  उसने
हम बैठे थे जहाँ वो तो नदिया का  किनारा था

शमां तो जली है रोशनी की  दरकार पे ए खुदा
किसी दिल के अंधेरों ने  ख्वाब ये संवारा  था

नज़रें तो थी मगर कहाँ उठाने की इजाज़त थी
कभी सोचा ही नहीं हमने क्या कुछ हमारा था

शौहर और बीवी की तक़रार सदा  चलती रही
शादी हुई थी जिस्मों की दिल मगर कंवारा था

हँसने की बातें तो  दूर की बातें हैं ए 'सरु'
मर्ज़ी से रोना भी कहाँ ज़माने को गवारा था




Behakane ki baat thi kuch sambhalne ka  ishara tha
Zaraa  khul ke  batlaao kya  matlab  tumharaa    tha

Manind sookhe patte ke hum  saath hawa  ke ho liye
Laga unn lamhoN meiN hume zindagi  ne pukara tha

Khudaa   jaane   kab   Rastaa  badal   liyaa     usne
Hum baithe the jahan vo to nadiya ka  kinaaraa tha

Shamaa to  jalee  roshni  ki   darkaar   pe  e  khuda
Kisi dil ke andheroN ne  khwaaaab ye sanwaara  tha

NazreiN to thi magar kahan uthane  ki  izaazat thi
Kabhi socha hi nahin humne kya  kuch  hamaara  tha

Shohar  aur  biwi  ki  taqraar  sadaa chalti  rahi
Shaadi hui thi jimson ki  magar  dil  kunwara  tha

Hasne ki  baateiN  to door ki baatein hain e ‘saru’
Marzee se ronaa bhi kahan zamaane  ko  gawaraa tha
ये दिल है सरफ़िरा गर कभी घूम गया तो घूम गया
याद रख  में  भी  तेरी सूरत भूल गया तो भूल गया

रोज़  मनाने  का  काम छूटा उल्फ़त का  भरम टूटा
अच्छा ही हुआ वो सितमगर रूठ गया तो रूठ गया

फिर  फूटेंगी   शाखें  फिर  आएँगे  पत्ते  और  फूल
आँधियों ये न समझना शज़र टूट गया तो टूट गया

अच्छे  कामों  को  बा-क़ायदा बनाए रखना  दोस्त
होता  है  ऐसा  भी अक्सर  छूट  गया तो छूट गया

खड़ी  हैं  क़तार  में   बहारें   गुल   नये   खिलाओ
क़िताबों  में रखा  गुलाब सूख  गया  तो सूख गया

बहुत शिद्दत से चाही थी नज़दीकियाँ उसकी लेकिन
तमाम  कोशिशों के  बावज़ूद  दूर गया तो दूर गया

कश्तियां ले ही जाती हैं हर मुसाफ़िर को साहिल पर
क्या  हुआ 'सरु' जैसा  कोई  डूब गया तो डूब गया


Ye dil hai sarfira gar kabhi  ghoom gaya to ghoom  gaya
Yaad rakh mein bhi teri soorat bhool gaya to bhool gaya

Roz  manaane ka  kaam chhoota ulfat kaa bharam toota
Achhaa hi  hua  vo  sitamgar  rooth  gaya  to  rooth gaya

Fir  footengi   shaakheN  fir   aayenge   patte  aur  phool
Aandhiyo ye na samajhna  shazar toot gaya to toot gaya

Achhe   kaamoN  ko   baqayadaa   banaaye  rakhna  dost
Hota  hai  aisa  bhi aksar  chhoot  gaya  to  chhoot  gaya

Khadi  hain   kataar   mein  bahaareiN   naye  gul  khilaao
kitaaboN  meiN  rakha  gulaab  sookh gaya to sookh gaya

Bahut  shiddat   se  chhaahi   thi  nazdikiyaaN  uski  lekin
Tamaam  koshishoN  ke bavajood door gaya to door gaya

kashtiyaaN  le hi jaati  haiN har musafir  ko  saahil par
Kya   hua ‘saru’ jaisaa  koi   doob  gaya  to  doob  gaya
छोड़ा  हाथ  हौसले   ने  न  डरूँ  तो  क्या  करूं
खुद पर नहीं जब इख्तियार  करूं तो क्या  करूं

मिला नहीं  अभी हवा को  रही  ज़ुस्तज़ू जिसकी
इठला के  पूछती  है  ना  फिरूँ   तो  क्या  करूं

डूबा  है  सारा  शहर  जब  समंदर-ए-सोज़  में
सोचूँ हूँ  तन्हा  तन्हा  मैं तरूँ  तो  क्या  करूं

इस  क़दर  कशिश  है इसके  ग़मों में ए ख़ुदाया
मौज-ए-दुनियाँ में बता  ना घिरूँ तो  क्या  करूं

सोच में  बैठा  है  आज  जुनूं -ए- अश्क़  मेरा
अटके  पलक पर  कैसे ना गिरूँ  तो  क्या करूं

जब  तलक  कच्चा  रहा  सहारे   पेड़  के  रहे
पाक  गया   पेड़ से  ना  गिरूँ  तो  क्या  करूं

लाख  हसरतें  उठी  दिल में कोशिशें  हज़ार  कीं
हाथों की लकीरों  में  नहीं  'सरु'  तो क्या करूं




Chhodaa haath  hausle ne na darooN to kya karooN
Khud par nahiN jab ikhtiyaar karooN to kya karooN

Mila nahiN abhi     hawaa  ko  rahi  justju jiski
Ithala ke  poochti hai naa firooN to  kya  karooN

Dooba hai  sara shahar  jab  samandar-e-soz  meiN
SochuN hooN tanha tanha meiN tarooN to kya karooN

Iss kadar kashish hai iske ghamoN mein e khudaya
Mauz-e-duniaN meiN bata na ghirooN to kya karooN

Soch meiN  baitha hai  aaj  junooN-e-shaq  mera
AtkooN palak par kaise na girooN to kya karooN

Jab talak  kachha rahaa  sahaare peid ke  rahe
Pa  gaya  peid  se  na girooN  to  kya  karooN

Lakh hasratein uthi dil mein koshisheN hazaar ki
haathoN ki lakeeroN mein nahiN ‘saru’to kya karooN
तू    सोए  तो   हो  जाएं   सवेरे मेरी   अना
आ  जाए  मुस्कान   लब  पे  मेरे  मेरी  अना

मुद्दत  से  तमन्ना  है  सलाम   भेजूं   उसको
बता  तो   क्या  मिजाज़  हैं तेरे   मेरी  अना

हर मोड़  पे  मिले  है  ज़रा दिखा तो  दे मुझे
हैं   यहाँ  वहाँ   कहाँ  कहाँ  डेरे  मेरी  अना

टिकने  ही  नहीं  देती  मुझको उस जगहा  पर
जहाँ  कहीं  भी  तेरे    बसेरे   हैं  मेरी   अना

गर  आश्ना  नहीं   तो  तुझे   बतला  दूं हासिल
तन्हाइयों   के   हैं   बस   घेरे   मेरी    अना

दिल  की  नज़र  से  देख  मुझे तन्हा  ना  छोड़
यहाँ    चारों    तरफ़ हैं अंधेरे    मेरी    अना

वो तो  हाय तुक्का  था  जो तीर  हो गया 'सरु'
आ   होश  में  वक़्त  के  हैं  फेरे  मेरी  अना
मेरा  पता  मुझको  बता मेरे ख़ुदा
में  दुनियाँ  में खो गया  मेरे ख़ुदा

मिटा  रही ये आँधियाँ  मेरा वुजूद
होने  लगा  खुद से जुदा मेरे खुदा

दर्द-ए-दिल का हो कोई ईलाज़ कुछ
कुछ कर दवा कुछ दे दुआ मेरे ख़ुदा

हादसे कुछ ऐसे यहाँ सि गुज़रे हैं
ना रो सका ना हँस सका मेरे ख़ुदा

क्यूँ  नहीं  कोई  खुशी किसी बात में
कुछ कर रहम कुछ कर वफ़ा मेरे ख़ुदा

घर उदासियों ने यहाँ कैसे कर लिया
ये क्यूँ हुआ कुछ तो बता मेरे ख़ुदा

तैयार है अब जलने को रूह-ए-सरु
तू  दे  उजालों  का पता मेरे ख़ुदा
छोड़ो   ये    बेकार   की   बातें
आओ   करें   प्यार  की   बातें

तुझे मंज़िल भला  मिलेगी कैसे
जो   सुनी  सौ-हज़ार  की  बातें

बड़ी  मुख़्तसार  है ज़िंदगी हाय
क्यूँ   करें    तक़रार   की  बातें

हँसी    में   उड़ाकर   ना  देखो
यूँ   अपने  बीमार   की   बातें

सुकून-ए-दिल दर्द की दवा थी
वो   चैन- ओ -क़रार  की  बातें

लुत्फ़-ए-ज़ीस्त  है  अगर देखो
याद  रहीं  इंतेज़ार  की   बातें

आते   हैं   ख्वाबों   में  करने
'सॅरू' से  वो  दीदार  की बातें
मोहब्बत  के  शरर  का नूर है
पास  है  खुशी  उदासी  दूर है

सूरत भी  बहुत खूब  सीरत भी
हां   वही   जन्नत   की  हूर है

ज़हन-ए-इंसान  ही  मयखाना है
जिसको   देखो   नशे  में  चूर है

फूलों कलियों की गलियों में भी
ख़ूबसूरती  उनकी   मशहूर  है

हुस्न की दुनियाँ ग़ुलाम उसी की
ज़बान  में  तहज़ीब-ओ-शऊर है

गम को आँसुओं से धो न सकी जो
वो  आँख  भी  कितनी  मजबूर है

इल्म वो हुआ 'सरु' को दर्द से
अंधेरा   भी  गम  का पूरनूर है
सिवा  तिरे  मेरी दुनियाँ में कोई  कमी  नहीं है
जब  उठा  है कदम तो पाँव  तले ज़मीं  नहीं है

यूँ  मीठे  गीत  गाते  हो ज्यों  गाती  है  हयात
कोई साज़- ओ- आवाज़ ऐसा दिलनशीं  नहीं है

तिरी  आँखों  के समंदर  में  हैं  भंवर  बेहिसाब
बचकर आ जाए कोई इसका मुझको यकीं नहीं है

हां  तुम  जहाँ जाओगे  तस्वीर-ए-वफ़ा  पाओगे
निगाह-ए-जहाँ कोई तिरी  आँख  से  हसीं नहीं है

चले बादा-ए-शसीम  तुझसे  महक जाएँ  फ़िज़ाएं
जन्नत  है  तुम हो जहाँ  और तो कहीं  नहीं है

तक़दीर की लकीरों  में नहीं  तो  वो  मिले  कैसे
हालात ही कहते हैं  कि इनका कोई  मकीं नहीं है

अब भी उलफत से छलके है पैमाना-ए-दिल उसका
आज भी'सरु'की ख़ातिर कोई  चीन-ए-ज़बीं नहीं है

bada-e-shaseem-----mehakati hawaa
cheen-e-zabeen------maathe ka shikan



Siwaa tere  meri  duniaN meiN koi kami nahiN hai
Jab utha hai kadam ti panw tale zameeN nahiN hai

Yun meethe geet gaate ho jyuN gaati hai hayaat
Koi  saaz-o-aawaaz aisa dil -nasheeN nahiN hai

Teri aankhoN ke samandar meiN haiN bhanwar behisaab
Bachkar aa  jaaye koi iska mujhko yakeeN nahiN hai

HaaN  tum  jahaaN jaaoge  tasveer-e-wafaa  paaoge
Nigah-e-jahaaN koi teri aankh se haseeN nahiN hai

Chale baadaa-e-shaseem tujhse mehak jayeN fizayeN
Jannat  hai  tum ho jahaaN aur to kahiN nahiN hai

Taqdeer ki  lakeeroN  meiN nahiN to vo mile kaise
Haalat hi kehte haiN ki Inka koi makeeN nahiN hai

Ab  bhi ulfat se chhalke  hai  paimaanaa-e-dil uska
Aaj bhi'saru’ki khaatir koi cheen-e-zabeeN nahiN hai
हर गली हर मोड़  पे मेरे कदम अटके बहुत
ज़िंदगी तुझे पाने को दुनियाँ में भटके बहुत

दुनियाँ में दर्द का सबब जाना जब ये जाना
फूल तो  अच्छे लगे काँटे मगर खटके बहुत

छूलें  आसमाँ को  हम खेलें चाँद तारों से
उड़ने की कोशिशों में झूलों पे लटके बहुत

ऐसा नहीं कि ख़ूबसूरती मिट चली जहाँ से
नूरानी  चेहरों  से  शीशे  भी चटके बहुत

दूरियों  से  बढ़ती है मुहब्बत कहते हैं वो
मज़बूरियों में मेरे आस-पास फटके बहुत

सूखी  रेत  की  मानिंद  ज़िंदगी में प्यास है
दरिया तो न बना सका बना लिए मटके बहुत

नाक़ाम  रहे  वो  तौर- तरीके दौर-ए-आज में
क़िताब में लिखा सबक'सरु'चली थी रटके बहुत



Har  gali  har  mod  pe  mere  kadam atke bahut
Zindagi tujhe pane ko doonian mein bhatke bahut

DooniaN mein dard ka sabab jana jab ye jana
Phool to ache lage kaante magar khatke bahut

chhooleiN aasmaN ko ham kheleiN chand taaroN se
Udne  ki koshishoN  meiN jhooloN pe latke bahut

Aisa nahiN ki khoobsoorati mit chali jahan se
Noorani  chehroN  se sheeshe bhi chatke bahut

DooriyoN se badhti hai MUhabbat kehte haiN vo
MazbooriyoN  meiN  mere  aas-paas fatke bahut

Sookhi reit ki maaninD zindagi meiN pyas hai
Dariya to na bana saka bana liye matke bahut

Nakaam  rahe  taur-tareeke  daur -e- aaj  meiN
Qitaab meiN likha sabak ‘saru’ chali thi ratke bahut

Sunday 4 January 2015

कुछ इस तरह ज़िंदगी में जान फूँकते रहे
कभी  उन्हें  मनाया  कभी हम रूठते रहे

जीने की अदाएँ  तो कोई  गुल से  सीखे
टूटे  जिस  शाख से  उसी  से  फूटते रहे

बहुत से लोग मिलते हैं राह-ए-ज़िंदगी में
कुछ  आते  रहे  याद  कुछ को  भूलते रहे

जज़्बा  रहा  था  दोनों  में बराबर शायद
हम  लुटते  रहे  प्यार  में  वो लूटते  रहे

कुछ तो हवाओं से कुछ आँधियों से रब्बा
ख्वाबों  के  पत्ते   शज़र  से   टूटते  रहे

यूँ  भी  हुआ  आसां  कुछ  सफ़र-ए-ज़िंदगी
कुछ   जुड़ते   रहे  रिश्ते   कुछ  छूटते   रहे

कितना हरा था पत्ता गुल था कितना लाल
शाख  से  क्या  टूटे  'सरु'  फिर  सूखते रहे



Kuch iss tarha zindagi meiN jaan foonk te rahe
Kabhi unheN manaaya kabhi hum rooth te rahe

Jeene ki  adaayeN   to  koi  gul   se  seekhe
Toote  jis   shaakh se  usi  se  foot  te rahe

Bahut se log  milte  hainN rah-e-zindagi meiN
Kuch  aate  rahe  yaad kuch  ko  bhoolte rahe

Zazbaa  rahaa tha  dono meiN baraabar shayad
Hum lut  te rahe  pyar   meiN  vo loot te rahe

Kuch to  hawaoN  se  kuch  aandhiyoN se rabba
khwaaboN  ke  patte  shazar  se  toot te rahe

Yun  bhi  hua  aasaN  kuch  safar- e -zindagi
Kuch judte rahe  rishte kuch  chhoot te  rahe

Kitna  haraa tha patta gul  thaa kitna laal
Shakh se  kya  toote’saru’fir sookhte rahe
क्या पाएगा मंज़िल जो अभी चला भी नहीं
कुछ कर गुजरूंगी ऐसा कभी लगा भी नहीं

देखी  हैं  बहुत इसने  आसमाँ की बुलंदियाँ
परिंदा सफ़र पसंद है कहीं पर रुका भी नहीं

जो  कहा  नहीं  तूने हाँ मैने वो भी किया
हालात का  बहाना तो कभी किया भी नहीं

हुनर हर जगह अपनी इज़्ज़त बना ही लेगा
ना  सोचो  पाठशाला  तो ये गया भी नहीं

वक़्त  की दौलत  कभी लौटकर ना आयेगी
फिर ना कहना ज़िंदगी तो में जीया ही नहीं

दर्द  में  भी  गर चाहो सुख तो हँसना सीखो
खुश मिज़ाजो के साथ ग़म कभी रहा भी नहीं

बार- बार  जो  रूठेगी  तो  कौन  मनाएगा
ऐसी  तो  कोई  तुझमें 'सरु' अदा  भी नहीं
मोहब्बत  से  बढ़कर  तो इबादत नहीं कोई
सिवा नफ़रत के  खुदा से बग़ावत नहीं कोई

तेरे  झूठ  का  नहीं  मलाल  इस  बात का है
तिरा-मिरा अब रिश्ता-ए-सदाक़त नहीं कोई

हसरतें  बदलते  ही  हाय  टूट  गया  वादा
इन  दोनों  के दरमियाँ मोहब्बत नहीं कोई

कोशिशें  लाखों  हर  पल रखनी होंगी ज़ारी
खूबसूरती  किसी  की विरासत  नहीं  कोई

उसको भूल जाओ और समझो मर गया वो
सिवाय  इसके  दर्द की हिमाक़त कोई नहीं

नहीं करता खुल के तारीफ़ किसी गुल की वो
खुश्बुओं  से  तो  उसकी  अदावत नहीं कोई

कहीं  झड़ी  हैं  दीवारें  कहीं  रंग उड़ा सा है
आज के इस दौर में 'सरु'सलामत नहीं कोई



Mohabbat se badhkar to ibaadat  nahiN  koi
Siwa nafrat ke khuda se bagaawat nahiN koi

Tere jhooth ka nahin malaal iss baat ka hai
Tera mera ab rishtaa-e-sadaaqat  nahiN  koi

HasrateiN badalte hi haye toot gaya wadaa
Inn dono ke darmiyaN  muhabbat  nahin koi

koshisheiN lakhoN har pal rakhni hongi zaari
khoobsoorati   kisi  ki  viraasat   nahiN  koi

usko  bhool  jaoo aur samjho  mar  gaya vo
siway  iske   dard   ki  himaaqat  nahiN koi

NahiN karta khul ke taareef kisi gul ki vo
khushbooN  se  to  uski  adaawat nahiN koi

Kahin jhadi haiN deewareiN kahiN rang udaa sa hai
Aaj ke  iss  daur  meiN ‘saru’ salaamat nahin koi

नज़रों ही नज़रों  में  मुहब्बत सी  हुई जाती है
ख़ामोश हैं लब यारब  क़यामत सी हुई जाती है

भटकते  हुये  भी  देख तेरे शहर में आ पंहुचे
जैसे मिरे  खुदा  की  हिदायत सी हुई जाती है

जो  आसपास  था  उसे  फ़ुर्सत  से देखा मैंने
फ़िज़ाओं की धुन्ध भी नियामत सी हुई जाती है

मुझसे   पूछे   बग़ैर   मेरे  फ़ैसले  होते  रहे
ये  ज़िंदगी  भी  कोई अदालत सी हुई जाती है

हिस्सा  रखते  हैं  जो सिर्फ़ दौलत और प्यार में
हर उस शख़्स से मुझे ख़िलाफत सी हुई जाती है

कोई समझे खता तो  समझे मगर मैं समझती हूँ
उसकी  मुहब्बत  में  इबादत  सी  हुई  जाती है

किसी एहसान के बदले मिली है दुआ भी 'सरु'
इंसानियत  भी  यहाँ सियासत सी हुई जाती है



NazroN hi nazroN  meiN  muhabbat si hui jaati hai
Khamosh hain lab ya Rab qayaamat si hui jaati hai

Bhatakte hue bhi dekh tere shahar me aa panhuche
Jaise  mere  khuda  ki  hidaayat  si  hui  jaati hai

Jo aas paas  tha  use  fursat se  dekha  maine
FizaoN  ki  dhundh bhi niyamat si hui jaati hai

Mujhse  pooche  bagair  mere  faisle hote rahe
Ye zindagi  bhi  koi adaalat  si hui jaati hai

Hissaa  rakhte hain jo sirf daulat aur pyar mein
Har uss shakhs se mujhe khilafat si hui jaati hai

Koi samjhe khataa to samjhe magar me samajhti hoon
Uski  mohabbat   meiN   ibaadat  si  hui jaati hai

Kisi  ehsaan  ke  badle mili hai dua bhi ‘saru’
Insaaniyat bhi yahan siyaasat si hui jaati hai
भीगी पलकें सुखाने  में ज़रा तो देर लगेगी
सूखे  ख्वाब  सुलाने में ज़रा तो देर लगेगी

छिपा जाते हैं सच भी और झूठ भी नहीं कहते
नज़र  से  पर्दा  उठाने  में ज़रा तो देर लगेगी

धुआँ धुआँ हो गया अश्क़ बरसने के बाद देखो
गीले  कागज़  जलाने  में ज़रा तो देर लगेगी

कारवां- ए- तूफान  गुज़रा  है  इन  राहों  से अभी
फिर से आशियाने को सजाने में ज़रा तो देर लगेगी

हाए जज़्बात के बादल अभी  तो उठ के आए हैं
बिजलियाँ  वहाँ  गिराने  में ज़रा तो देर लगेगी

खुशी  की  बात हो तो खुशी इतनी नहीं होती
पीकर अश्क़ मुस्कुराने  में ज़रा तो देर लगेगी

आसमाँ को देखा है अभी ज़रा पंख खोले हैं
हौसले और होने में 'सरु'ज़रा तो देर लगेगी




Bheegi palkeiN sukhane mein zaraa to der lagegi
Sookhe khwaab sulaane mein zaraa to der lagegi

Chhipa jaate hain sach bhi aur jhooth bhi nahiN kehte
Nazar se  pardaa  uthaane  mein zaraa to der lagegi

DhuaN dhuaN ho gaya ashaq barasne ke baad dekho
Geele kagaj jalaane meiN zaraa to der lagegi

KarwaaN-e-toofan gujraa hai inn raahoN se abhi
Fir se aashiyaane ko sajaane meiN zaraa to der lagegi

Haye jazabeet ke baadal abhi to uth kea aye hain
bijliyaN wahaanN giraane meiN zaraa to der lagegi

khushi ki baat bhi ho khushi itni nahiN nahin hoti
ashq peekar muskuraane mein zaraa to der lagegi

aasmaaN ko dekha hai abhi zaraa pankh khole haiN
hausle aur hone meiN ‘saru’ zaraa to der lagegi

रोने   कोई   देता  नहीं   और  हँसी  आती  नहीं
इस ज़िंदगी की क्या बताएँ कश्मकश जाती नहीं

खबर वो झूठी ही सही पर सुनने में अच्छी लगी
सच्ची  बातें तो  हरगिज़ इस दौर में भाती नहीं

वो नायाब मोती हैं जो मिलते  नहीं  बाज़ारों में
वफ़ा बिन उल्फ़त यूँ है जैसे दीया है बाती नहीं

या रब इस नादान को अपनी दीद का रास्ता बता
हौसले तूफ़ां  के कभी तितलियाँ जान पाती नहीं

सजाकर ख्यालों को मीठी जबां से करना पेश
फिर  देखना बात तुम्हारी कैसे रंग लाती नहीं

उतनी ही नज़दीकियाँ हैं उसकी खुदा से जान लो
जिसकी ज़रूरत और अना यूँ ही सर उठाती नहीं

उसके दिल में ना उतार पाई कभी आवाज़'सरु'की
वर्ना  मोर पपीहा कोयल किस धुन में गाती नहीं

ना  इत्तेफ़ाक़  कोई  ना   कोई  क़हर  चाहिये
नींद टूटे  वो रु-ब-रु हों  ऐसी  सहर  चाहिये

कायनात  को समझ  पाउँ  गीतांजली पढ़ के
इक  बार  टेगौर  का वो मुझको शहर चाहिये

उठे  हैं  जज़्बात  यूँ तो  दिल  में  कैसे -कैसे
मेरी  ग़ज़ल  मुकम्मल कर दे वो बहर चाहिये

नुमायां है  उसका  नूर  यूँ  तो हर  इंसान  में
हो   रोशन   इंसानियत   वो  महर   चाहिये

एक नहीं सौ बार मुझ ही पर बिजलियाँ गिरा
मगर  ए आसमाँ राहतों के कुछ पहर चाहिये

बहुत सताती है मुझे  आ -आकर  ख़यालों में
तेरी  यादों  को  मिटा  डाले वो ज़हर चाहिये

निकल आएँगे मोती 'सरु' उसके दिल से कभी
ख्वाबों  के  समंदर  में मुसलसल लहर चाहिये


Na   ittefaaq    koi   naa   koi   kehar   chahiye
Neend toote vo ru-b-ru hon aisi sahar chahiye

Kaynaat ko samajh paun Geetanjali padh ke
Ek  baar Tagore kaa mujhko shahar chahiye

Uthe hain jazbaat yun to  dil mein  kaise-kaise
Meri ghazal mukammal kar de vo bahar chahiye

NumayaN hai uska nor yun to har insaan meiN
Ho  roshan  insaaniyat  vo  mehar   chahiye

Ek nahiN sau baar  mujh hi par bijliyaaN giraa
Magar e aasmaN rahatoN ke kuch pehar chahiye

Bahut sataati mujhe  aa-aakar khyaloN meiN
Teri yaadoN ko  mitaa dale vo zehar chahiye

Nikal  aayenge  moti ‘saru’ uske  dil se kabhi
khwaaboN ke samandar meiN musalsal lehar chahiye

इतराती बलखाती अदाओं के रुख़ मोड़े गये
ले  जा  के तूर पर  सर हवाओं के फोड़े गये

आने लगे थे ख़्वाब कुछ हाये दिल से उठकर
मानिंद गीले  कपड़े  के आँख से निचोड़े गये

बता कौन निभाता है खून के भी रिश्ते यहाँ
हां वो भी आख़िर टूटे जो दिल से जोड़े गये

कुछ इस तरह रहा तमाम  उम्र का हिसाब मेरा
कुछ गये  संजीदगी  में  दिल्लगी में थोड़े गये

हुआ दिल के पार कोई  कोई  जिगर के पार था
किस किस की जबां के तरकश से तीर छोड़े गये

मुद्दत  बाद  सोया है  गहरी  नींदों  में  कोई
यूँ  लगता  है  उसके  बेचे  सारे  घोड़े  गये

जिन्हें याद ही न हुआ सबक़ मोहब्बत का यहां
वो  दरबार-ए-ज़ीस्त  में 'सरु' खाते  कोड़े गये
 


Itraati  balkhaati adaaoN ke rukh mode gaye
Le jaa  ke toor par hawaoN ke sar fode gaye

Aane lage the khwaab kuch haye dil se uthkar
Maanind geele kapde kea ankh se nichode gaye

Bata kaun nibhata hai khoon ke bhi rishte yahaN
Haan vo  bhi aakhir toote  jo dil se  jode gaye

Kuch iss tarah rahaa tamaam umra ka hisaab mera
Kuch gaye sanjeedgi mein dillagi mein thode gaye

Hua  dil  ke paar  koi  koi  jigar ke paar tha
Kis kis ki zabbaN ke tarkash se teer chhode gaye

Muddat baad soya hai gehri neendoN mein koi
Yun  lagta  hai uske  beche saare ghode gaye

jinheN yaad hi na hua mohabbat ka sabak yahan
vo darbaar-e-zeest mein’saru’khate kode gaye

दरवाज़े  सबके  लिए  खोलता  है  दिल्ली  शहर
इंसान  को  इंसान  से  जोड़ता है  दिल्ली  शहर

हाय हामिद का चिमटा कभी आतिश-ए-ईश्क़ में
आज भी मुंशी ग़ालिब को खोजता है दिल्ली शहर

जितनी गलियाँ  मकां शुमार उतनी बोलियाँ जबां
ज़बान  प्यार  की सबसे  बोलता है दिल्ली शहर

इमारतें  मुग़लिया  पांडवों  के  हस्तिनापुर  से
लोगों  पे  छाप  अपनी  छोड़ता है दिल्ली शहर

बर्फ़ीली  सर्दी  तेज़ बारिशें  तपती  गरमी कभी
हर  मौसम  का आँचल ओढ़ता  है दिल्ली शहर

और  क्या  चल  रहा  है  पूछें  जो  यूपी  वाले
हम  बोले  चलता  नहीं  दौड़ता  है  दिल्ली शहर

चाँदनी- चौंक  ही नहीं 'सरु'ने हर चप्पा देखा
लगा क्या बिजलियों सा कोंधता है दिल्ली शहर


Darwaaze  sabke  liye  kholtaa  hai  Dilli   shahar
Insaan   ko insaan  se  jodtaa  hai  Dilli   shahar

Haye Hamid  ka  chimtaa kabhi aatish-e-ishq meiN
Aaj bhi munshi ghalib ko khojta hai Dilli shahar

Jitni galiyan makaan shumaar utni boliyan zabaaN
zabaaN  pyaar ki sabse   boltaa hai Dilli shahar

imaaratein mugaliya pandavon ke Hastinapur se
LogoN pe chhaap apni chhodtaa hai Dilli shahar

Barfili  sardee  tez  baarishen tapti garmi kabhi
Har mausam  kaa aanchala odhtaa hai Dilli shahar

Aur  kyaa  chal rahaa hai  poocheN jo uupee waale
Ham  bole  chaltaa nahiN daudtaa hai Dilli shahar

Chandni chaunk hi nahiN ‘saru’ ne har chappa dekha
Lagaa kyaa bijliyoN saa kondhtaa hai  Dilli shahar

सिवा हमारे नफ़रतों को मिटाने वाला कौन है
हिंदुस्तान को मोहब्बत सिखाने वाला कौन है

वो  और  होंगे जो  कहा दुनियाँ का सुनते हैं
तूफ़ानों  को  रास्ते  बताने  वाला  कौन  है

सोये हुओं को होगी  गरज मुरगे  के  बांग की
आफ़ताब  को  नींद  से जगाने वाला कौन है

हदें अपनी परवाज़ की तय करते हैं खुद ही वो
परिन्दो को आसमाँ  पर  उड़ाने  वाला कौन है

रंग-ओ-खुश्बू के सिवा नहीं ज़िंदगी का सबब
खूबसूरत  गुलों  को  महकाने  वाला कौन है

तेज़  धूप  और बारिशें कोशिश  हज़ार कर लें
दुनियाँ  में  परबतों  को हिलाने वाला कौन है

किसी  ने भी  कहा  नहीं  तुम्हें  याद  करेंगे
'सरु'को हाये हिचकियाँ दिलाने वाला कौन है



Siwaa hamaare nafrat ko mitaane wala kaun hai
Hindustaan ko mohabbat sikhaane wala kaun hai

Vo  aur  honge jo kahaa duniaaN ka sunte hain
Toofaanon  ko  raaste  bataane  wala kaun hai

Soye  huoN  ko hogi  garaj murge ke baang ki
Aaftaab  ko  neend  se jagaane wala kaun hai

HadeN apni parwaaz ki tai karte hain khud hi vo
parindoN  ko  aasmaanN par udaane wala kaun hai

Rang-o-khushboo ke siwa nahin zindagi ka sabab
khoobsoorat guloN ko  mehkaane  wala  kaun hai

tez dhoop aur baarisheN koshisheN hazaar kar leiN
DooniaN  meiN  parbatoN ko  hilaane wala kaun hai

kisi ne bhi kahaa nahinn  tunheN yaad  karenge
'saru’ko haye hichkiyaN dilaane wala kaun hai