Monday 9 February 2015

मेरे  ख्वाबों  का क़ातिल बता दो
या  बीते पल  यादों  से मिटा दो

माना  हर  मसले का हल नहीं है
तो  फिर  जीने का रस्ता बता दो

गर  खतावार  हूँ  तो है गुज़ारिश
आज  हथकड़ियाँ  मुझको लगा दो

नाम-ए-दिलबर लिखते हो जहाँ भी
यारो  मेरा  नाम  वहीं  लिखा दो

पहले खुल  के मिरी खता बता दो
फिर जो चाहे मुझे  सज़ा सुना दो

परदा  डालो  के  दिखती  ग़रीबी
दूध  ज़रा  सा पानी  में मिला दो

दिल का गुलशन'सरु'खिल के रहेगा
यारो मुफ़लिस का मुखड़ा  खिला दो



Mere khwaabonN ka qatil  bataa do
Yaa  beete pal yaadoN se mitaa do

Maanaa har  masle ka hal nahiN hai
To  fir  jeene ka rastaa  bataa do

Gar khatawaar hoon to hai gujaarish
AAj  hathkadiyaN  mujhko  lagaa  do

Naam-e-dilbar Likhte ho jahaaN bhi
Yaaro  mera  naam  wahiN likhaa do

Pehle khul ke meri  khata bata do
Fir jo chaahe mujhe saza sunaa do

Parda  daalo  ke  dikhti  Gareebi
Doodh zara  sa paani meiN mila do

Dil ka gulshan ‘saru’khil ke rahega
Yaaro  muflis  ka  mukhda khilaa do


http://www.yoindia.com/shayariadab/miscellaneous-shayri/qaatil-bataa-dosaru153-t119072.0.html

Sunday 8 February 2015


रंग  बहारों  के  उतर  क्यूँ जाते
ख़ुश्बू  के  तेरी  असर क्यूँ जाते

शाख-ए-मोहब्बत जो रहती हरी
पत्तों की तरहा बिखर क्यूँ जाते

गर होते आज भी साथ मिरे तुम
खुशियों के लम्हे गुज़र क्यूँ जाते

लग  जाता अगर यहीं कारख़ाना
छोड़ अपना गांव शहर क्यूँ जाते

क़ाबू  में रखते ज़ुबाँ गर अपनी
नज़रों से उनकी उतर क्यूँ जाते

होता  गर  इरादा -ए- दगाबाज़ी
लूटा के चमन को मगर क्यूँ जाते

इंतज़ार तेरा 'सरु' गर न  होता
इस मोड़ पे हम ठहर क्यूँ जाते




Rang  bahaaroN  ke utar kyun jaate
Khushboo  ke  teri asar kyun jaate

Shakh -e -mohabbat  jo rehti hari
PattoN ki tarha bikhar kyun jaate

Gar  hote  aaj  bhi  saath mere tum
KhushiyoN ke lamhe gujar kyun jaate

Lag jata  agar  yahiN   karkhaanaa
Chhod apna gaanw shahar kyun jaate

Kaboo meiN rakhte zubaaN gar apni
NazroN  se  unki  utar kyun jaate

Hotaa  gar  iraadaa- e- dagaabaazi
Lutaa ke chaman ko magar kyun jaate

Intezar teraa ‘saru’gar na hota
Iss mod pe ham thahar kyun jaate



http://www.yoindia.com/shayariadab/miscellaneous-shayri/asar-kyun-jaatesaru152-t119052.0.html

हंसता  है  दिल  इश्क़ में या रो रहा है
या  कोई  आँखों  को  धोखा हो रहा है

चाहिए  कोई  तो  सुने  सुनाये दिल की
जूस्तज़ु  में  उसकी  ये कहीं खो रहा है

फ़ैसले किये नहीं सोच  समझ के जिसने
गहुओं  के  खेत  में  बथुआ  बो रहा है

ज़हन  पे  सर-काँधे  पे या दिल पे कोई
यहाँ  जिंदगी  को  हर  कोई  ढो रहा है

आँख का पानी  है  इसे  गम नहीं कहते
धुँधला  सी  गई  आँखों  को धो रहा है

यक़ीनन  गया  नहीं  फूलों  की बस्ती में
मसल  के  लेता   खुश्बुएं  जो  रहा  है

मुद्दत से न मिला कभी जवाब इसका'सरु'
कौन  जागे  है मुझमें  कौन  सो रहा है




Hansta hai dil ishq meiN ya ro rahaa hai
Ya koi aankhoN ko dhokha ho rahaa hai

Chahiye koi to sune sunaaye dil ki
Justzu meiN uski ye kahiN kho rahaa hai

Faisle kiye nahiN soch samajh ke jisne
GehuoN ke khait meiN bathua bo rahaa hai

Zehan pe sir-kaandhe pe ya dil pe koi
YahaaN jindagi ko har koi dho rahaa hai

Aankh ka paani hai ise gham nahiN kehte
Dhundhla si gai aankhoN ko dho rahaa hai

Yakeenan gaya nahiN phooloN ki basti meiN
Masal ke leta khushbuyeN jo rahaa hai

Muddat se mila n jawaab iska ‘saru’
Kaun jaage hai mujhmeiN kaun so rahaa hai




रुकती साँसों  को ठहरने ना दिया अब तक
क्यूँ  मैने खुद को मरने ना दिया अब तक

टूटे  हैं तो क्या मगर अभी  भी  दिल में है
ख्वाबों को दिल ने बिखरने ना दिया अब तक

सीने से  पलकों  तलक आये कई बार आँसू
कश्ती-ए-आँख से उतरने  ना दिया अब तक

दुनियाँ  न काट डाले  इस ख़ौफ़ से शज़र ने
सूखे पत्तों को  भी गिरने ना दिया अब तक

बग़ैर मतलब  के  तो सलाम भी नहीं करते
इस अदा ने रिश्ता सुधरने ना दिया अब तक

बदल  डाले  हालात  ने  इरादे  किये हुए
बातों पे  अपनी ठहरने  ना दिया अब तक

आँधियों के  डर से हवाओं को न रोक 'सरु'
तूने ही गुलशन  सँवरने ना दिया अब तक

इक बार  नहीं  मैने  उसे   सौ बार कहा
इश्क़  आतिश  है  उसने  आबशार कहा

मुख़्तसर  कहा  बेखौफ़ और दमदार भी
बयाँ जो भी किया दिल का इसरार कहा

निगाह  में जाने किस खुशी का दरिया है
इस गम से भरी दुनियाँ को गुलज़ार कहा

उठ  के  चलें  तूफ़ाँ कुछ देखते  नहीं
बेचैनियों  को  उसने  हाय क़रार  कहा

मज़बूरियाँ होती हैं  ऐसी  भी ज़ीस्त में
हालात को  ही  जन्नत  के दीदार कहा

गुलशन-ए- उल्फ़त में बिखर जाते टूट के
गुल  को महक- हवाओं  ने इंतज़ार कहा

बेहुनर  ही  हाय रश्क़ होता  है खुद पर
'सरु' सी मुफ़लिस को उसने शहरयार कहा

डबडबाई सी आँखों को ख़्वाब क्या दूं
चेहरा पढ़ने वालों को क़िताब क्या दूं

मुस्कुराहट और ये जलवा-ए-रुखसार
इन गुलाबों के चमन को गुलाब क्या दूं

आशना हो तुम जब हालात से मेरे
तुम ही बतलाओ तुमको जनाब क्या दूं

उठें सवाल तो बैठ के मसला हल करें
अब तन्हाई में सोचकर जवाब क्या दूं

उम्मीद ही रक्खी ना सहारा ही मिला
इस ज़माने को मैं अपना हिसाब क्या दूं

सिमटी हुई है खुद आशियाँ में काँच के
बिखरते दिल को सहारा-ए-शराब क्या दूं

ख़्याल न आया 'सरु' को रही जब जवानियाँ
मुरझा गये ज़ज़्बातों को शबाब क्या दूं

बदल  लेती  है रहगुजर  कोई  गिला नहीं करती
ठोकरें   जहान  की खाके हवाएँ गिरा नहीं करती

वज़ूद  है  मेरा  शायद इस  बात की गवाही को
दुनियाँ  में  सभी से तो ज़िंदगी वफ़ा नहीं करती

शब  में  होती है जो थोड़ी  बहुत  होती है उनकी
रोशनी   यहाँ  कद्र  जुग्नुओं की ज़रा नहीं करती

ये  नहीं  के  ना  आयें  गरमियाँ  सरदी के बाद
देर  से ही सही  मगर  ज़बां से फिरा नहीं करती

होती  हैं   तक़दीर  से  मोहब्बत   की  बरसातें
जहाँ  होती है  होती  है रोके   रुका  नहीं करती

लग जाये  तो  लग  जाये मेरे बस की बात कहाँ
अपनी और  से तो  में किसी का बुरा नहीं करती

हो  भूले  से भी किसी को इस से किसी से इसको
दिल के हक़ में 'सरु'मोहब्बत की दुआ नहीं करती

हाथ हाथों में क्या लिये साथी
दूर दुनियाँ से चल दिये साथी

आज चाहत है किसे मंज़िल की
तेरे  वादे  पे हम जिये साथी

दर्द बन कर जो बिजलियाँ टूटी
ज़ख्म इक दूजे के सिये साथी

प्यार ही देखा हर अदावत में
जान के दवा ज़हर पिये साथी

अदा रखते हैं अजब वादों की
निभाये दिल से जो किये साथी

ख़ास ही रास्ते थे जहाँ गुज़री
बात पंहुची तेरे हिये साथी

जिधर कदम उठे'सरु'तेरे मानो
उधर ही हम हो लिये साथी

चाँद सितारों से बढ़ कर लिख
फूलो काँटों तक चल कर लिख

महफ़िल में जो हो,जाने दे
तू तन्हाई में जम कर लिख

कौन बुरा ,क्या अच्छा है
तू बस मस्ती में भर कर लिख

बहुत होश वाले है जग में
तू दीवाना सा बन कर लिख

सूख न जाये झील प्यार की
एहसासों को भी भर कर लिख

आज युवा मन चाहे उड़ना
उसकी चाहें को भर कर लिख

समझेंगे दुनिया वाले भी
सरु तू बस मन की बन कर लिख

किताबों में  दिल की  कहानी रहेगी
किसी प्यार  की खुश  निशानी रहेगी

नज़रों से  नज़रें जो मिलती रहीं तो
चाहत  जिगर  मे   पुरानी  रहेगी

मुहब्बत सिखाने से गर सीख ले दिल
जवाँ   हर  घड़ी  जिंदगानी   रहेगी

नही आग है न  है  पानी ये उल्फत
महक  तेरी  मेरी   सुहानी   रहेगी

अगर  राह  भी  तू दिखाता चले तो
मंज़िल  की  जानिब  रवानी  रहेगी

नही  इंतहा  है  तुम्हारी  लगन  की
मगर  ये  भी दिल पर निशानी रहेगी

अगर आज आओ,तो जागेगी क़िस्मत
सरू  शाम   कितनी  सुहानी  रहेगी

भूल गई हूँ अब वे दिन पचपन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

हँसी मुझे तेरी कितनी प्यारी लगती
हर मुस्कान मुझे तेरी न्यारी लगती
और बढ़ी है अब तो हसरत जीने की
चाहूं फिर वे दिल मीठी धड़कन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

देख खिलौने और मिठाई लाती हूँ
जाके में बाज़ार भूल सब  जाती हूँ
कान्हा की सूरत क्यूँ तुझमें दिखती है
तुझपे सदके फूल सभी उपवन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

जीवन संध्या का इक तारा है तू ही
मुझे जान से अब तो प्यारा है तू ही
चहके महके तू ही अब इस उपवन में
बाग़  तुम्हारे  लिये लगे चंदन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले


यकीं उसकी उल्फ़त का मुझे आने तो दे
हँस   भी  लेंगे  पहले  मुस्कुराने  तो दे

तीर  क्या नज़रों  से तलवार चला जानां
जहां  तू नहीं है  जगह वो बताने तो दे

सूरज ढल जाने  का मतलब अंधेरा  नहीं
चाँद  निकलने दे तारे झिलमिलाने तो दे

अजी भूख की छोडो पहले प्यास की सुनो
ज़ख़्म  इन  हाथ के छालों को खाने तो दे

बदल डाले कब सूरत आती जाती आँधियाँ
अदाएँ  ज़रा  बहारों  को  दिखाने तो दे

तरकश  ही खाली है ना  तज़ुर्बे में कमी
लगाने हैं तीर जहाँ  वो  निशाने  तो दे

ए नये ज़माने नया सबक भी सीख लूंगी
याद हैं जो पहले से 'सरु'को भुलाने तो दे


YakeeN uski ulfat ka mujhe aane to de
Hans bhi lengeN pehle muskuraane to de

Teer kya nazroN se talwar chala janaN
JahaN tu nahiN hai jagah vo bataane to de

Sooraj dhal  jaane ka matlab andhera nahiN
Chand nikalne de tare jhilmilaane to de

Aji bhookh ki chhodo pehle pyaas ki suno
Zakhm inn haath ke chhaloN ko khane to de

Badal dale kab soorat aati jaati andhiyaN
AdayeN zaraa bahaaroN ko dikhane to de

Taekash hi khali hai na tazurbe meiN kami
Lagaane haiN teer jahaaN vo nishane to de

E naye zamaane naya sabak bhi seekh loongi
Yaad haiN jo pehle se ‘saru’ ko bhulaane to de

चाँद की  बस्ती  में काफ़िला सितारों का मिले
उठा  दो  जहाँ  पलकें मौसम बहारों का मिले

दुनियाँ की  भीड़ थी और  हम  आप से मिले
तक़दीर  से  साथ  ऐसे  रहगुजारों  का मिले

रहेगा  मुंतज़िर तेरा पत्ता पत्ता इस चमन का
हमेशा की तरहा कल भी हाथ सहारों का मिले

टकराती  हैं लहरों से  कश्ती-ए-ज़िंदगी  मगर
आप की तरह हमें भी साथ किनारों  का मिले

उतर गई आप की ख़ुश्बू हर कली हर फूल में
खुदा करे की आपको भी साथ हज़ारों का मिले

नई रुत नये साज़ नया मंज़र मुबारक हो तुम्हें
समाँ  ज़िंदगी  भर  खूबसूरत नज़ारों का मिले

उजालों  की  मंज़िल आप सच की इबारत आप
'सरु' को भी रब्बा पता उन गलियारों का मिले 

ये  मोहब्बत  है पनाह  में  नहीं रहती
बहुत देर  ख़ुश्बू गुलाब में  नहीं  रहती

बिखर जाती हूँ कागज पर बन के मोती
मैं   सियाही  हूँ  दवात  में नहीं रहती

आती है खुद मोहब्बत चलकर  यहाँ तक
शीरीं ज़बान किसी तलाश में नहीं रहती

ज़िक्र होता है  गुलशन  फूल हवाओं का
मगर ख़ुश्बू  कभी क़िताब में  नहीं रहती

बिखर जाने के हुनर से है वजूद  मिरा
रोशनी  हूँ  में  चिराग़  में नहीं रहती

गिरते  को  गिराये  चढ़ते  को चढ़ाये
जानूं  हूँ  दुनियाँ हिसाब में नहीं रहती

आँख खुली बदले मंज़र तो पाया'सरु' ने
हक़ीक़त की दुनियाँ ख़्वाब में नहीं रहती





Ye  mohabbat  hai panaah mein nahiN  rehti
Bahut der khushboo Gulaab mein nahiN rehti

Bikhar jaati  hoon kaagaj par ban ke moti
meiN siyaahi hooN dawaat mein nahiN rehti

Aati hai khud  mohabbat chalkar yahaN  tak
ShiriN zabaaN kisi talaash mein nahiN rehti

Zikr hota hai gulshan phool hawaaoN ka
Magar khushboo kabhi qitaab mein nahiN rehti

Bikhar jaane ke vujood se hai hunar mera
Roshni hooN meiN chiraag mein nahiN rehti

Girte ko giraaye chadhte ko chadhaye
janooN hooN duniaN hisaab mein nahiN rehti

Aankh khuli badle manjar to paya ‘saru’ ne
Haqiqat ki duniaN khwaab mein nahiN rehti

खुश्बू-ए-गुल को हवाओं  से मिल जाने दे
रम  जाने दे ज़रा सा  और रम  जाने दे

दुनियाँ  से  ले जाएगा  ये रोग  इश्क़ का
लग  जाने दे ज़रा सा  और  लग जाने दे

लगेंगी गोलियाँ  निशाने पे दुश्मन का सर
उठ  जाने दे  ज़रा  सा  और उठ  जाने दे

फिर सोचेंगे हम भी जानां मंज़िल की बात
रुक  जाने  दे  ज़रा सा और रुक जाने दे

जीते  हैं  तेरे  लिए  मर-मर  के  ज़िंदगी
मर  जाने  दे  ज़रा  सा  और मर जाने दे

चले जाना मगर गुज़ारिश है  राग  दिल का
थम  जाने  दे  ज़रा  सा  और थम जाने दे

बज़्म -ए-शब  में उसकी यादों का दीया 'सरु'
जल जाने  दे ज़रा  सा  और  जल  जाने दे

गुजरेगा यहीं से घर खुदा के रास्ता कोई
राह-ए-मुहब्बत में क्यूँ इतना सोचता कोई

रहा गुबार ही गुबार सहराओं में दूर तलक
रह गया फूलों का पता पूछता कोई

थक  चुकी में बहुत लड़ते-लड़ते ज़िंदगी से
हो जाने दे अब आर-पार का  फ़ैसला कोई

बाकी है टूटे घरों में कुछ पत्थर कुछ दीवारें
रह गया मुसाफ़िर मंज़िलों को ढूंढता कोई

है खार से खिजां से धूप से बस वास्ता मिरा
फूलों से मतलब ना ख़ुश्बू से राबता कोई

सुनते हो आजकल रफ़ी के दर्द भरे नगमे
तेरा भी किसी माशूक़ से था वास्ता कोई

अच्छा बुरा जो भी होगा अभी होगा मिरी जां
बहुत देर तक रहता नहीं 'सरु' ज़लज़ला कोई

मंज़िल  कोई  और मुझे  बताये  ही क्यूँ
यहाँ  बुलाकर  वाइज़  को लाये  ही क्यूँ

तुम ही वक़्त थे न हम ही थे रास्ता कोई
जाना  था  जब छोड़कर तो आये ही क्यूँ

की  तर-बतर उम्मीद  मगर बरसे  वो नहीं
काले बादल नील- गगन पर  छाये ही क्यूँ

है जगह दिल में बहुत और जिगर मज़बूत भी
वर्ना  दर्द  यहाँ  आके  चैन  पाये  ही क्यूँ

हटा  सको  गर  राह  के  पत्थर  हटा दो
ठोकर  फिर  कोई  मुसाफिर  खाये ही क्यूँ

हैं  रोशनी  में  इस पर  खड़े  होने  वाले
तक़दीर  में  ज़मीं के  सिर्फ़  साये ही क्यूँ

हासिल नहीं कुछ  भी हुआ  अब सोचती है
'सरु' ने  वो  गीत  पुराने  गाये ही क्यूँ



Manzil koi aur mujhe bataaye hi kyun
Yahan bulakar wize ko laaye hi kyun

Tum hi waqt the na ham hi the rasta koi
Jana tha jab  chodkar to aaye hi kyun

Ki tar batar ummeed magar barse vo nahin
Kale baadal neel gagan par chhaye hi kyun

Hai jagha dil mein bahut aur jigar mazboot bhi
Verna dard yahan aake chein paaye hi kyun

Hata sako gar raah ke patthar hataa do
Thokar fir koi musafir khaaye hi kyun

Hain roshni mein is par khade hone wale
Taqdeer mein zameen ke sirf saaye hi kyun

Haasil nahin kuch bhi hua ab sochti hai
‘saru’ ne vo geet purane gaaye hi kyun

झुकती हैं पलकें कभी उठ- उठ  देखती हैं
हसरतें उन्हीं गलियों में चल चल देखती हैं

इरादा ही  है  कोई   ना  हौसला  इसमें
ठोकरों से क्या  गुबार उड़ -उड़  देखती हैं

देखी है औरत  और  औरत  की  ज़िंदगी
यहाँ जीने के लिये ही मर -मर  देखती हैं

कर  लिया  इरादा  उलझने  का  मौजों से
अब कश्तियाँ लहरों को  तन- तन देखती हैं

बहक जाने दे  मदहोशी  के  इस आलम में
होके मेहरबां  वो  नज़रें  कब-कब देखती हैं

तूफ़ां उठे  थे कभी दम से जिसके वही साँसे
रास्ता  उसी  ख़ुश्बू  का पल -पल देखती हैं

वही हाल अपना सा  जुदा  नहीं था कुछ भी
घर से निकल के 'सरु'जो घर घर देखती है


ज़िंदगी  धुआँ -धुआँ  शाम  सी  लगती है
हर  बात  खास  मुझे आम सी  लगती है

तन्हाइयों  के  घर  मुझे  छोड़  गया  वो
रोशनी  भी  अब  गुमनाम  सी  लगती है

बहका हुआ सा था मिली जिस किसी से में
ज़िंदगी  या -रब  ये  जाम  सी लगती है

कामयाबी  देखती  है  दौलत  हर  सिम्त
मुहब्बत  अब मुझे नाकाम  सी  लगती है

खाते  हैं  लोग  ख़ौफ़  नाम  से  इसके
उल्फ़त  इस क़दर बदनाम  सी लगती है

हुये  तीनों  लोको  के दर्शन  यहीं मुझको
गृहस्थी ही  अब चारों  धाम सी लगती है

चल दे जिधर 'सरु' रुख़ उधर ही हो जाए
हवाएँ  भी  उसी की  ग़ुलाम सी लगती है





Zindagi dhuan dhuan sham si lagti hai
Har baat khas mujhe aam si lagti hai

TanhaiyoN ke ghar mujhe chhor gaya vo
Roshni bhi ab gumnaam si lagti hai

Behka hua sat ha mili jis kisi se meiN
Zindagi ya-rab ye jam si lagti hai

Kamyaabi dekhti hai daulat har simt
Mohabbat ab mujhe nakaam si lagti hai

Khate hain log khauf naam se iske
Ulfat iss qadar badnaam si lagti hai

Huye teenoN loko darshan yahiN mujhko
Grihsthi hi ab charoN dham si lagti hai

Chal de jidhar ‘saru’ rukh udhar hi ho jaye
Hawayen bhi usi ki gulaam si lagti hai

चाँद- सितारों  में हैं क्या चर्चे चलकर  देखा जाये
ज़मीं का आसमाँ से कभी दिल बदलकर देखा जाये

क़िताबी  इल्म  नहीं  यारो तज़रबा अपना है मेरा
बेहतर  है दुनियाँ को घर से निकलकर देखा जाये

वही  धूप  हवाएँ  वही  मिट्टी  है उस घर में भी
इन  बीच  की दीवारों  से उपर उठकर देखा जाये

झूठ नहीं ये  सच कहेगा  दिल हमेशा खुश रहेगा
आ  ज़िंदगी  के  आईने  में  सँवरकर देखा जाये

मिलती हूँ जब भी पापा से तब तब जी में आता है
बच्चों  की  तरह क्यूँ ना आज मचलकर देखा जाये

यहाँ  इनसां- इनसां को बनाया ज़िंदगी को ज़िंदगी
दर्द-ओ-गम  को  भी हमेशा मुस्कुराकर देखा जाये

अब कितनी बदलें चाल देखकर रास्तों के हाल'सरु'
इन राहों के हर मोड़ पर रुक- रुक कर देखा जाये


Chand-sitaaroN meiN haiN kya charche chalkar dekha jaye
ZameeN ka aasmaaN se kabhi dil badalkar dekha jaye

KItaabivv ilm nahiN yaaro tazarba apna hai mera
Behtar hai duniaN ko ghar se nikalkar dekha jaye

Wahi dhoop hawayeN wahi mitti hai uss ghar meiN bhi
Inn beech ki deewaroN se uar uthkar dekha jaye

Jhooth nahiN ye sach kahega dil hamesha khush rahega
Aaa zindagi ke aaine meiN sanwarkar dekha jaye

Milti hooN jab bhi papa se tab tab jee meiN aata hai
BachhoN ki tarha kyun na aaj machalkar dekha jaye

YahaaN insaaN-InsaaN ko banaya zindagi ko zindagi
Dard-o-gham ko bhi hamesha muskurakar dekha jaye


Ab kitni badleiN chal dekhkar raastoN ke haal ‘saru”
In  raahoN ke har mod par ruk- ruk kar dekha jaye

खंजर  देख  ना  कटार देख
तू क़लम देख और धार देख

आई  नहीं  ख़बर  इक तेरी
हर दिन आता अख़बार  देख

दिल के दरीचे खोल  के रख
खुद को तारों  में शुमार देख

ले  लिया  है  मुझसे  पंगा
अब बचने  के  आसार देख

बुरा -बुरा  सबको  कहता है
पहले  अपना  व्यवहार  देख

नहीं  नौकरी  बस  की तेरे
चल  कोई  व्यापार  देख

दिल लगाते वक़्त ना देखा
अब हर घड़ी इंतज़ार देख

बेटियों  को  खिलने दे फिर
घर  आँगन  में बहार देख

बाँट -बाँट  कर खाया सबने
'सरु'मुफ़लिसी में प्यार देख

क्या कहूँ किसी एक को दिल ये ज़रा-ज़रा सबने तोड़ा
कुछ थे  मेरे  अपने  और  ज़रा- ज़रा  रब ने तोड़ा

देखा  है जब  भी ग़ौर से  इनसां  को  मैने किसी
साफ़  नज़ारे  देखना  इन  आँखों  के ढब ने तोड़ा

ख़्वाब  कहाँ  पलकों  के  लिये  गर  हैं नींदें गहरी
है कौन  नहीं  वाक़िफ़  ख्वाबों को मतलब ने तोड़ा

दम  टूटता  ना  था या रब  रिश्ता  छूटता ना था
माहौल  अमन का हाय  गुस्ताख  उस लब ने तोड़ा

बंद  डिब्बे  का  सामां  मुझे मिला कीड़ों के साथ
देखिए  नफ़रत  का  गुरूर ख़ुश्बू की छब ने तोड़ा

शर्म-ओ-हया का बोझ 'सरु'रहेगा सर पे कब तक
जानती  हूँ ये  कि  मेरी जात  को अदब ने तोड़ा

छोड़े  थे  वहाँ मैनें  तो  महके  हुए  लफ्ज़  कुछ
भरम  दिल  का  मेरे    उनके हाय सबब ने तोड़ा



Kya kahoon kisi ek ko dil ye zaraa zaraa sab ne todaa
Kuch the mere apne aur zaraa zaraa rab ne todaa

Dekha hai jab bhi gaur se insaaN ko maine kisi
Saaf nazaare dekhna inn aankhoN ke dhab ne todaa

Khwaab kahan palkoN ke lye gar haiN neendeiN gehri
Hai kaun nahiN waqif khwaaboN ko matlab ne todaa

Dam toot tan a tha ya rab rishta choot ta  na tha
Mahaul aman ka haye khaamosh us lab ne todaa

Band dobbe ka saamaaN mujhe mila keedoN ke saath
Dekhiye nafrat ka guroor khushboo ki chhab ne todaa

Chhode the wahaan maine to mehke hue lafz kuch
Bharam dil ka mere unke haye sabab ne todaa

Sharm-o-hayaa ka bojh ‘saru’rahega sar par kab tak
Janti hooN ye ki meri jaat ko adab ne todaa

आज से अब से  कोई  गीत  ऐसा  गाएँ  हम
चाहे गम मिले या खुशियां बस  मुस्कुराएँ हम

जब हदें  नहीं  कोई खुले इन आसमानों की
भरे  उड़ानें  हर  कोई  सारे पर फ़ैलाएँ हम

पाएँ ना  तन्हा खुद को ख्वाब ही क्यूँ ना हो
इक  दूजे  के दिल में ऐसे जगह बनाएँ हम

छोड़ दे अपना गुरूर  खिलते  हुए गुलाब भी
हंसते  हुये  चेहरों  से  चमन  सजाएँ  हम

कल  में आज  जैसी  बात रहे ना रहे दोस्तो
चलो गुज़रते हुए  इन लम्हों में जी जाएँ हम

सौ न सही दस ही सही मगर बुझने से पहले
दिल-दिल में चिराग़ मुहब्बतो के जलाएँ हम

टिक जाय गर आसमाँ में वो आफ़ताब 'सरु'
सुहानी शाम चाँदनी रातें कैसे पाएँ हम

दिल ये मेरी  नज़र कर दे
मुझको  मेरी  ख़बर कर दे

दीवाना  तुझको  सदा  रखूं
मुझमें  ऐसा  हुनर  कर दे

जब- जब  याद  तेरी आये
गुलो-ख़ुश्बू सा असर कर दे

जगाके  गम  की  नींदों से
इन  रातों  की सहर कर दे

छोड़ उलफत के  निशां जाएं
अपना  प्यार  अमर कर दे

अपना  घर बसा के दिल में
तू ख्वाबों  का  शहर कर दे

ज़रा जम- जम के बरस बादल
'सरु' की  धानी चुनर कर दे

जहाँ इतने हैं ए दिल वहाँ एक फसाना और सही
जीने  का  तेरे  वादे  पे  एक बहाना और सही

और है  पानी ए दिल समंदर में आँखों के अभी
आँख तो  है आँख इसमें ख्वाब सुहाना और सही

उड़ने दो परिंदे दिल के थकहार के वापस आएँगे
कुछ रोज़ को ही जानो उसका ठिकाना और सही

वही नज़रें वही गुलशन आइए दीद तो कर लीजे
हम  आज  भी  वैसे  हैं चाहे ज़माना और सही

तू सौ चाहे हज़ार आयें अपनी बिसात ही क्या
लाखों में हज़ारों में बस एक दीवाना और सही

फिर से कीजे कोशिश गुनगुनाने दीजे दिल को
वही मायने हैं अब भी माना तराना और सही

दास्तान-ए-जिंदगी होने को है मुकम्मल'सरु'बस
कोरे काग़ज़ पे कुछ देर लिखना-मिटाना और सही

ये जिंदगी इक बार क्या दस बार चल के आये
तू  आये  बहार  आये चमनज़ार चल के आये

छोड़े  ना  तेरा  साथ  जो  आ जाये मौत भी
नादां  जहाँ  के  लोग  हैं बेकार चल के आये

मुमकिन  है मेरी  आँख को हो जाय तेरी दीद
इस  रास्ते  पे  इसलिए सौ बार चल के आये

तेरी  निगाह- ए- नाज़  में  इकरार  है  मगर
कहने को अपने लब से तू इक बार चल के आये

सुनते  थे  तेरी  बज़्म  में  मिलती  हैं  राहतें
अपने  लिये  जो  आये तो आज़ार चल के आये

तीर-ए-ईश्क़ की  बदौलत  हैं  दिल की धड़कनें
कोई  तो  खूबी  है  जो  शिकार चल के आये

आँख में निगाह 'सरु' ना दिल में मोहब्बत कोई
आए   तो  सही  मुझ  से  बेज़ार चल के आये

उस  पार वो  तो  जाके  इस  पार  देखते हैं
साहिल  पे  बैठे  हम  ही  मझधार  देखते हैं

ये जिंदगी हमारी उलझन का  सिलसिला है
पहले   से  पहले   अगली   तैयार  देखते  हैं

दी  है हमें हिदायत बचने की जिससे वाइज़
दुनियां  को  हम  उसी  का बीमार देखते हैं

बैठे   हैं  डाले  डेरा  इस   राह  के  मुसाफ़िर
आने  के  तेरे   जब   से   आसार  देखते हैं

ग़म-ओ-खुशी से  मौला बेज़ार  मुझे कर दे
खुशियों  के  साये- साये  आज़ार  देखते हैं

गलियों का ईश्क़ की तज़र्बा हो  गया शायद
अशआर जो  भी  कह  दें  दमदार देखते हैं

इस वास्ते 'सरु'को सुबह-ओ-शाम  छेड़ते हैं
गुस्से  में  भी  ग़ज़ब  का  प्यार देखते हैं
तेरी  दोस्ती  को  ज़िंदगी  की  जान  मानती हूँ
लबों की मुस्कुराहट दिल का अरमान मानती हूँ

खुदा  के बनाये रिश्ते बहुत अनमोल हैं लेकिन
तेरी  दोस्ती  को  अपनी  पहचान  मानती हूँ

सुरूर  सा  रहता  है  ख़ुशनसीबी  का अपनी
हर मुश्क़िल सफ़र की अपने आसान मानती हूँ

बस  यही दुआ  रहती  है लब पर तेरे वास्ते
उस रब से तेरी खुशियों का सामान मानती हूँ

तेज़  धूप  में शज़र  का साया दीया अंधेरे में
चाँद तारों से सजा सिर पे आसमान मानती हूँ

तेरी राहों को मोड़ दिया जिसने दिल तक मेरे
मैं उस लम्हे उस वक़्त का एहसान मानती हूँ

समझ जाये बातें 'सरु' की लब खोलने से पहले
मेरे साथ  गुनगुनाये  वो  हम ज़बान मानती हूँ

ग़ज़ल पर ग़ज़ल मैं तुझको सोचकर लिखती रही
मेरी  ज़िंदगी   तुझे   मैं   उम्र  भर  लिखती  रही

क़िताब- ए- हसरत और मेरे अश्क़ों की सियाही
क़लम से दिल के ख्वाबों  का शहर लिखती रही

ये  आँखें   बरसी  वस्ल  में  कभी  हिज्र में रोई
हर  अंदाज़  में  अपना तेरी नज़र लिखती रही

नादानी   लिखती  रही   हैरानी  लिखती  रही
पानी कभी पत्थर पे  तेरा  असर  लिखती रही

बात  उठे  उठकर चले  मगर  पहुँचे कहीं नहीं
तेरे  मेरे  बीच  रहे   इस  क़दर  लिखती  रही

दुनियाँ  की  भीड़  में  हर  कोई चाँद तो नहीं
रात के आँगन  में तारों  का सफ़र लिखती रही

तेरी   मजबूरियाँ   रही   हों  ये  और  बात  है
वक़्त-बेवक़्त'सरु'तुझे अपनी ख़बर लिखती रही


तहरीरें   काग़ज़   पर   उतार  लीजिये
लीजिये  क़लम   मे
रा   उधार   लीजिये

जब  फ़र्श-ए-गुल लगा  दिया हवाओं ने
आइए  मज़ा- ए- चमन- ज़ार  लीजिये

हो  जाती  है  ग़लती  जाने -अनजाने
बेहतर   है   उसे   स्वीकार   लीजिये

हम  क्या  हमारा  ये जहाँ आपका है
इक फूल क्या  आप  गुलज़ार लीजिये

टटोलकर  नब्ज़  बारीकियों  से उसका
दिल क्या फिर जान भी सरकार लीजिये

इक वक़्त के सिवा सब  लौट  आयेगा
गहराइयों  से  दिल की पुकार लीजिये

पास कुछ भी नहीं मगर सब कुछ है'सरु'
अमीबा  की  मानिंद   आकार  लीजिये

हालात  ही  बदले  न  खुद  को बदल पाये हम
समझी हमें दुनियाँ न उस को समझ पाये हम

किसको   फ़ुरसत  है  जो   बैठे   पूछे  दास्तां
दर्द-ए-दिल से अब  तक कैसे उभर पाये हम

धीरे  - धीरे   फूल   छोटे   खार  बड़े  हो  गये
वक़्त के साथ इसलिए कम ही महक पाये हम

जानम  इक  तेरी  हसरत  हमें बरबाद कर गई
फिसले उस दिन केअब तक न संभल पाये हम

अश्क़ बह के  कह  गये जानते  हैं  हम ही ये
आँख  के   दायरे  में  कैसे  सिमट  पाये  हम

तक़दीर  का  लिखा हरगिज़ नहीं मिटने वाला
आग पर चल कर भी देखिए जल न पाये हम

बची खुची उम्मीद 'सरु' जाती न रहे दिल से
शायद  इस ख़्याल से घर से निकल पाये हम

चरागों  के क़िस्से  हवाओं की दास्तां  सुनाकर जाना
नई  सुबहा  नई रोशनी  नया रास्ता  बताकर जाना

आना -जाना  लगा  रहेगा  यूँ  ही  दुनियां के मेले में
खिले  रहें यादों के फूल इस  तरहा मुस्कुरा कर जाना

आज देती है आवाज़  ये   छोटी  सी  इक पाठशाला
इस गुंचे में इन कलियों में अपनी महक बसाकर जाना

सीखे  हैं  हँसना  यक़ीनन  फूल भी तुम्हीं को देखकर
हंसते हैं  कैसे  भूलकर ग़म को हमें भी सिखाकर जाना

तेज़  रफ़्तारी की इस दुनियां में बसर मुश्क़िल है बहुत
आते - जाते  ही  सही  मतवाली चाल दिखाकर जाना

ज़रूरी  है जो  जीने के लिये चाक़ जिगर सीने के लिए
हुनर  के  उस  ख़ास खजाने से वाक़िफ़ कराकर जाना

प्यारा -सा  ईक़  रिश्ता  हमारे  दरमियाँ  मुद्दत  से है
'सरु'जाते जाते महफ़िल में गीतमिलन का गाकर जाना

आजा  के मेरी  खुशियों की  सौगात बन के आ
चाँद  तारों से  महकी शबनमी  रात बन के आ

ए  सनम  में भूल जाऊं  अगले पिछले सारे गम
इस दिल में नई  दुनियाँ की शुरुआत बन के आ

खिले  फूल  कभी दिल का रंग होंठों पे आ जाये
मेरे  उजड़े हुये चमन में  तिलिस्मात बन के आ

तस्वीर-ए-ख़याल-ए-यार से कहता है दिल अक्सर
देख  सुनती  है तो  आजा  करामात  बन  के आ

आये न रास  हरदम  दिन गर्म  और  रातें सर्द
में मोर  बन  के ना चूं  तू  बरसात बन के आ

जी  उठे  मरने के बाद मार मिटें  उठने के बाद
दिलबर  मेरे  सूरत-ए-गुजर-औकात  बन के आ

चलने  को जगह'सरु' न  रुकने की ताब है मेरी
बह  जायें  हाये  समंदर भी वो गात बन के आ

बहे चलो जब तक किनारे ना मिलें
साहिल के  बेशक़  इशारे ना मिलें

मुझे इक आसमाँ  काफ़ी  है सर पे
नहीं शिक़वा चाँद सितारे ना मिलें

ख्वाब  तो   ढूँढ  लेते  हैं  ठिकाने
कभी किसी को ये बंजारे ना मिलें

न खुशी की आरज़ू ए सनम हमें तो
तेरे  ग़म  के  भी  सहारे  ना  मिलें

गुम हो  किस  ख्वाब में मेरी आँखो
निशान किसी राह  तुम्हारे ना मिलें

मिले बहुत से लोग रह-ए-जिंदगी में
ये  सच  है  तुमसे  प्यारे  ना मिले

करूँ  बयां   कैसे   सूरत   मैं   तेरी
'सरु' को जहाँ में इस्तियारे ना मिलें











सुनी  हैं  मैनें  कहानियाँ  ये  जबां  जबां  से
हां अच्छे  हैं  हम  इससे उससे फलां फलां से

था  सीधा  सा रास्ता अपना मंज़िल थी आसां
और  होके  आए  हैं  रब  जाने  कहाँ  कहाँ से

चली  रोशनी की  बात  हवाओं के साथ साथ
कह रही थी जाने क्या उस पल शमा शमा  से

चला आसमाँ की ओर ये लेकर गुबार-ए-दिल
दबी थी आग जहाँ धुआँ उठ के वहाँ वहाँ से

नये  दौर  के  इस  शहर में कहाँ  है  तेरा घर
मुझको  तो नज़र आते हैं यहाँ मकां मकां से

गिर जाती हैं बिजलियाँ  बादलों से हसरत के
मिल आई  है पहले ही या रब  कज़ा कज़ा से

देती हैं पता 'सरु'और भी कितनी बातों का
गुजर  जाती  हैं  मेरी  खुश्बुएं  जहाँ जहाँ से
जिंदगी इक बार  नहीं  सौ बार  चल  के आये
तू आये  बहार  आए  गुलज़ार  चल  के आये

तीर-ए-ईश्क़  की बदौलत हैं धड़कनें दिल की
कोई  तो  खूबी  है  जो  शिकार  चल के आये

छोड़ेंगे ना  हाथ तेरा  किसी  क़ीमत  अब तो
दुनियाँ   वाले   यहाँ   बेकार  चल  के  आये

काफ़ी  है यूँ  तो तिरा  नज़र मिला के देखना
जबां  भी गर खोल  दे  ऐतबार  चल के आये

क्या  पता इन  आँखों  को  तेरी दीद हो जाय
शहर की उस गली  में  बार-बार चल के आये

ये  तूने  इश्क़  की गली  में घर क्या बसाया
जितने  भी थे  जहाँ में  आज़ार चल के आये

आँख में निगाह'सरु'ना दिल में मोहब्बत कोई
आए  तो  सही  मुझ  से  बेज़ार  चल के आये


ख़्वाब- ओ-हक़ीकत में आसां याराने कहाँ  होते हैं
इन आसमानों  में  किसी के ठिकाने कहाँ  होते हैं

सजाकर लफ्ज़ करीने से कह डालिए दिल की बातें
यूँ  रोज़ -रोज़  फुरसतों  के  नज़राने  कहाँ होते हैं

जलाते हैं ये  जब  चाहे  जब  चाहे बुझाते हैं शमां
इन्सा  -  इन्सा   होते  हैं  परवाने  कहाँ  होते  हैं

जाने  कितनी देर मिली है जीने की मोहलत यहाँ
जी  हर पल  जिंदा  रहने  को ज़माने  कहाँ होते हैं

लो ज़ायक़ा उठाओ लुत्फ़ हर छोटी-छोटी बात में
इनसे  बेहतर  जिंदगी  में  खज़ाने  कहाँ  होते हैं

बहती नदिया में गाती है गीत गिरती उठती लहर
ठहरे  दरिया  के   पानी  में  तराने  कहाँ  होते हैं

सीख  लेते  हैं भले  ही संभल  के चलना राहों में
यहाँ बिन ठोकर के लोग 'सरु'सयाने कहाँ होते हैं





Khwaab-o-haqikat meiN aasaaN yaraane kahan hote haiN
Inn  aasmaanoN  meiN  kisi ke  thikaane kahan hote haiN

Sajaakar  lafz   kareene  se   keh  daaliye  dil   ki  baateiN
YuN   roz-roz  fursatoN   ke  nazraane  kahaaN hote haiN

Jalaate haiN  ye jab chahe jab chahe  bujhate haiN shamaa
InsaaN –InsaaN  hote  haiN  parwaane  kahaN   hote  haiN

Jaane   kitni  deir   mili   hai  jeene  ki   mohalat  yahaN
Jee  har  pal  jinda  rehne  ko  jamaane kahaN hote haiN

Lo  jayka   uthao  lutf   har   chhoti - chhoti   baat  meiN
Inse  behtar  jindagi  meiN  khajaane  kahaN  hote haiN

Girti  uthati  lehar  gaati  hai  geet  behti  nadiya meiN
Thahare  dariya  ke  paani  meiN tarane kahan hote haiN

Seekh  lete haiN bhale hi sambhal ke  chalna raahoN meiN
YahaN  bin thokar ke ‘saru’ log sayaane kahan hote haiN


 आँखों में  नूर  आया  मिरे  लब  पे  हँसी  आ गई
   हम  भूले  हुये  थे  राहें  और  तेरी  गली  आ गई

   उड़ाये  जुल्फें   मिरी   कभी  आँचल  से  खेले  है
   तुम्हें जो  देखा  इन हवाओं को दिल्लगी आ गई

   मिलते ही आँखें पढ़ गए हाल-ए-दिल गहराई तक
   गई  बेरूख़ी  उनकी  लहजे  में  भी  नमी  आ गई

   रंग  तेरे  पास  आ  बैठे  लब   ये  गुनगुना   बैठे
   तस्वीरों को बोलना नगमों में नगमगी  आ  गई

   मिली  थी  राहतें  ज़माने  के  शोलों  की गरमी से
   लो फिर उसी बरसात के मौसम की तलबी आ गई

   जब  छा  गई  घटायें ज़मीं  से आसमानों  तक यहाँ
   सजेगा फिर गुल-ए-गुलशन उम्मीद की कली आ गई

   जब  भी  आँख उठाई  है देखे  हैं  करिश्में ए खुदा
   झुकी है आँख'सरु' की तिरे क़दमों में जबी आ गई
कोई मंज़िल भी नहीं कहीं मुझे जाना  भी नहीं
तेरी  ख़ातिर ऐ  ज़िंदगी  मैं  दीवाना  भी नहीं

पुराने क़िस्सों की अब दुहाई ना दिया कर मुझे
पहले वाला  तो ऐ दोस्त  अब ज़माना भी नहीं

संगमरमर  का  ताज  कोई  बनवाउँ जीते जी
मेरे  शहर  के  आसपास तो मकराना भी नहीं

लपेटकर  रख लोगे जब चाहो पतंग नहीं हूँ मैं 
होश में हूँ और अब मौसम आशिकाना भी नहीं

जमाने  भर की ज़िम्मेदारियों का बोझ डाल के
तुम खुल के हँसो और मुझे मुस्कुराना भी नहीं

गुबार-ए-दुनियाँ कभी जब भारी कर देती है सर
टेक  लूं  सुकून  से  ऐसा कोई शाना भी नहीं 

दवा करने की न दर्द सहने की ताक़त रही'सरु'
तू  रूठा  ही  बेहतर  है  तुझे मनाना भी नहीं