Sunday 8 February 2015


बदल  लेती  है रहगुजर  कोई  गिला नहीं करती
ठोकरें   जहान  की खाके हवाएँ गिरा नहीं करती

वज़ूद  है  मेरा  शायद इस  बात की गवाही को
दुनियाँ  में  सभी से तो ज़िंदगी वफ़ा नहीं करती

शब  में  होती है जो थोड़ी  बहुत  होती है उनकी
रोशनी   यहाँ  कद्र  जुग्नुओं की ज़रा नहीं करती

ये  नहीं  के  ना  आयें  गरमियाँ  सरदी के बाद
देर  से ही सही  मगर  ज़बां से फिरा नहीं करती

होती  हैं   तक़दीर  से  मोहब्बत   की  बरसातें
जहाँ  होती है  होती  है रोके   रुका  नहीं करती

लग जाये  तो  लग  जाये मेरे बस की बात कहाँ
अपनी और  से तो  में किसी का बुरा नहीं करती

हो  भूले  से भी किसी को इस से किसी से इसको
दिल के हक़ में 'सरु'मोहब्बत की दुआ नहीं करती

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