Sunday 8 February 2015


आज से अब से  कोई  गीत  ऐसा  गाएँ  हम
चाहे गम मिले या खुशियां बस  मुस्कुराएँ हम

जब हदें  नहीं  कोई खुले इन आसमानों की
भरे  उड़ानें  हर  कोई  सारे पर फ़ैलाएँ हम

पाएँ ना  तन्हा खुद को ख्वाब ही क्यूँ ना हो
इक  दूजे  के दिल में ऐसे जगह बनाएँ हम

छोड़ दे अपना गुरूर  खिलते  हुए गुलाब भी
हंसते  हुये  चेहरों  से  चमन  सजाएँ  हम

कल  में आज  जैसी  बात रहे ना रहे दोस्तो
चलो गुज़रते हुए  इन लम्हों में जी जाएँ हम

सौ न सही दस ही सही मगर बुझने से पहले
दिल-दिल में चिराग़ मुहब्बतो के जलाएँ हम

टिक जाय गर आसमाँ में वो आफ़ताब 'सरु'
सुहानी शाम चाँदनी रातें कैसे पाएँ हम

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