Sunday 8 February 2015


बहे चलो जब तक किनारे ना मिलें
साहिल के  बेशक़  इशारे ना मिलें

मुझे इक आसमाँ  काफ़ी  है सर पे
नहीं शिक़वा चाँद सितारे ना मिलें

ख्वाब  तो   ढूँढ  लेते  हैं  ठिकाने
कभी किसी को ये बंजारे ना मिलें

न खुशी की आरज़ू ए सनम हमें तो
तेरे  ग़म  के  भी  सहारे  ना  मिलें

गुम हो  किस  ख्वाब में मेरी आँखो
निशान किसी राह  तुम्हारे ना मिलें

मिले बहुत से लोग रह-ए-जिंदगी में
ये  सच  है  तुमसे  प्यारे  ना मिले

करूँ  बयां   कैसे   सूरत   मैं   तेरी
'सरु' को जहाँ में इस्तियारे ना मिलें

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