Sunday 8 February 2015


भूल गई हूँ अब वे दिन पचपन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

हँसी मुझे तेरी कितनी प्यारी लगती
हर मुस्कान मुझे तेरी न्यारी लगती
और बढ़ी है अब तो हसरत जीने की
चाहूं फिर वे दिल मीठी धड़कन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

देख खिलौने और मिठाई लाती हूँ
जाके में बाज़ार भूल सब  जाती हूँ
कान्हा की सूरत क्यूँ तुझमें दिखती है
तुझपे सदके फूल सभी उपवन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

जीवन संध्या का इक तारा है तू ही
मुझे जान से अब तो प्यारा है तू ही
चहके महके तू ही अब इस उपवन में
बाग़  तुम्हारे  लिये लगे चंदन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले

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