भूल गई हूँ अब वे दिन पचपन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले
हँसी मुझे तेरी कितनी प्यारी लगती
हर मुस्कान मुझे तेरी न्यारी लगती
और बढ़ी है अब तो हसरत जीने की
चाहूं फिर वे दिल मीठी धड़कन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले
देख खिलौने और मिठाई लाती हूँ
जाके में बाज़ार भूल सब जाती हूँ
कान्हा की सूरत क्यूँ तुझमें दिखती है
तुझपे सदके फूल सभी उपवन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले
जीवन संध्या का इक तारा है तू ही
मुझे जान से अब तो प्यारा है तू ही
चहके महके तू ही अब इस उपवन में
बाग़ तुम्हारे लिये लगे चंदन वाले
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले
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