Sunday 8 February 2015

तेरी  दोस्ती  को  ज़िंदगी  की  जान  मानती हूँ
लबों की मुस्कुराहट दिल का अरमान मानती हूँ

खुदा  के बनाये रिश्ते बहुत अनमोल हैं लेकिन
तेरी  दोस्ती  को  अपनी  पहचान  मानती हूँ

सुरूर  सा  रहता  है  ख़ुशनसीबी  का अपनी
हर मुश्क़िल सफ़र की अपने आसान मानती हूँ

बस  यही दुआ  रहती  है लब पर तेरे वास्ते
उस रब से तेरी खुशियों का सामान मानती हूँ

तेज़  धूप  में शज़र  का साया दीया अंधेरे में
चाँद तारों से सजा सिर पे आसमान मानती हूँ

तेरी राहों को मोड़ दिया जिसने दिल तक मेरे
मैं उस लम्हे उस वक़्त का एहसान मानती हूँ

समझ जाये बातें 'सरु' की लब खोलने से पहले
मेरे साथ  गुनगुनाये  वो  हम ज़बान मानती हूँ

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