Sunday 8 February 2015


आजा  के मेरी  खुशियों की  सौगात बन के आ
चाँद  तारों से  महकी शबनमी  रात बन के आ

ए  सनम  में भूल जाऊं  अगले पिछले सारे गम
इस दिल में नई  दुनियाँ की शुरुआत बन के आ

खिले  फूल  कभी दिल का रंग होंठों पे आ जाये
मेरे  उजड़े हुये चमन में  तिलिस्मात बन के आ

तस्वीर-ए-ख़याल-ए-यार से कहता है दिल अक्सर
देख  सुनती  है तो  आजा  करामात  बन  के आ

आये न रास  हरदम  दिन गर्म  और  रातें सर्द
में मोर  बन  के ना चूं  तू  बरसात बन के आ

जी  उठे  मरने के बाद मार मिटें  उठने के बाद
दिलबर  मेरे  सूरत-ए-गुजर-औकात  बन के आ

चलने  को जगह'सरु' न  रुकने की ताब है मेरी
बह  जायें  हाये  समंदर भी वो गात बन के आ

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