Sunday 4 January 2015


रोने   कोई   देता  नहीं   और  हँसी  आती  नहीं
इस ज़िंदगी की क्या बताएँ कश्मकश जाती नहीं

खबर वो झूठी ही सही पर सुनने में अच्छी लगी
सच्ची  बातें तो  हरगिज़ इस दौर में भाती नहीं

वो नायाब मोती हैं जो मिलते  नहीं  बाज़ारों में
वफ़ा बिन उल्फ़त यूँ है जैसे दीया है बाती नहीं

या रब इस नादान को अपनी दीद का रास्ता बता
हौसले तूफ़ां  के कभी तितलियाँ जान पाती नहीं

सजाकर ख्यालों को मीठी जबां से करना पेश
फिर  देखना बात तुम्हारी कैसे रंग लाती नहीं

उतनी ही नज़दीकियाँ हैं उसकी खुदा से जान लो
जिसकी ज़रूरत और अना यूँ ही सर उठाती नहीं

उसके दिल में ना उतार पाई कभी आवाज़'सरु'की
वर्ना  मोर पपीहा कोयल किस धुन में गाती नहीं

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