Thursday 1 January 2015

क्या कहूँ किसी एक को दिल ये ज़रा ज़रा सबने तोड़ा
कुछ मेरे अपने थे और ज़रा ज़रा रब ने तोड़ा

छोड़े थे वहाँ मैनें तो महके हुए लफ्ज़ कुछ
भरम दिल का मेरे हाय उनके सबब ने तोड़ा

 ख़्वाब कहाँ पलकों के लिये गर हैं नींदें गहरी
है कौन  नहीं वाक़िफ़ ख्वाबों को मतलब ने तोड़ा

देखा है जब भी ग़ौर से इनसां को मैने किसी
साफ़ नज़ारे देखना इन आँखों के ढब ने तोड़ा

दम टूटता ना था या रब रिश्ता छूटता ना था
माहौल अमन का हाय गुस्ताख उस लब ने तोड़ा

बंद डिब्बे का सामां मुझे कीड़ों के साथ मिला
देखिए नफ़रत का गुरूर ख़ुश्बू की छब ने तोड़ा

शर्म--हया का बोझ कब तक सर पर रहेगा 'सरु'

जानती हूँ ये की मेरी जात को अदब ने तोड़ा

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