नज़रों में और आए नज़र
चुराने में
भला कैसे इज़्ज़त पुरानी
रह जायेगी
सीख लो मोहब्बत जितनी
सीखी जाये
वर्ना अंधेरों में
जवानी रह जायेगी
उल्फ़त की आग देखना
कुछ हो रोज़ में
खुद अपने हाथों बुझानी
रह जायेगी
कितनी साफ़ थी मंज़िल
रोशनी में तेरी
तू नहीं तो कैसे रवानी
रह जायेगी
सितम की इंतेहां
जिस्म पर ख़त्म
नहीं होती
रूह पे भी
कुछ तो निशानी
रह जायेगी
चली आना 'सरु'वर्ना इंतज़ार में
तेरे
गुनगुनाती शाम सुहानी
रह जायेगी
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