Sunday 4 January 2015

गुलशन-ए-दिल जिसने महकाया है
वो  मौसम  अब  जाकर  आया  है

तान  के  चादर  सोइ  थी  कब  से
उन्हीं   ख्वाहिशों   ने   जगाया  है

किसी   भँवरे   ने   बड़ी  शिद्दत  से
गुलाबों    से   गुलशन   सजाया  है

उलझन  की  किताब  पर लिखा गीत
दिल  ने दिल  को दिल  से सुनाया है

दीवार- ए -वक़्त   गिरी  है   यूँ  अब
जैसे    हवाओं     ने    गिराया    है

तेरे   आने   का   असर    हुआ   तो
मुझे   जीने    का   हुनर   आया   है

अब  तक  जिन  पर  था गुनाह चलना
'सरु' को  किसने  उन पर  सिखाया है

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