ज़बान पे कुछ और है दिल में है कुछ और
जिस्म के दर्द और हैं दिल के हैं कुछ और
ज़माने भर की बातें वो मुझसे बोलता रहा
मैने जो सुनना चाहा वो बातें है कुछ और
जिस्म के दर्द और हैं दिल के हैं कुछ और
ज़माने भर की बातें वो मुझसे बोलता रहा
मैने जो सुनना चाहा वो बातें है कुछ और
जब हाल पे अपने हम तुम ना रह सके
क्या हुआ जो बदल के जमाने है कुछ और
क़िस्से कहानियाँ जहाँ में सबके एक से कहाँ
उसके अलग मेरा जुदा फसाने है कुछ और
चेहरे का रंग बात का लहज़ा ही बदल गया
वो नहीं उस शख़्स में अब बातें है कुछ और
हमको था गुमांं के हम साहिल पे आ बैठे
उसके समंदर और है ,मेरे है कुछ और
पहले जैसा तो अब "सरु" रहा भी कुछ नहीं
नज़रें भी कुछ और हैं नज़ारे है कुछ और
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