Monday 5 January 2015

पुरानी   क़िताबों   से   धूल   झाड़ते  रहना
काग़ज़  पे लिखके  जज़्बात  फ़ाड़ते   रहना

बदलते   ही   रहते   हैं  ख़्याल  ज़माने  के
गर  बुरा  कुछ लगे तो  मिट्टी  डालते रहना

बिखरी   है  ज़माने  की   हवाओं  से  हरसू
मुसीबतों  को  गर्द  सा  बस  झाड़ते  रहना

मात-पिता हैं  ज़मीन- औ- आसमाँ ए बंदे
हर  पल  तुम  तैयार  उनके  वास्ते  
रहना 

खिज़ाओं  के  मौसम बिखर  न जाना कभी
ख़्वाब   ज़िंदगी   में   नये   पालते   रहना

आलसी  लोगों   की  है  आदत  ये   मशहूर
हो  काम  कैसा  भी  कल  पर  टालते रहना

जिंदगानी  ना  मिले शायद  देकर  जान  भी
तुम  दामन हौसले  का 'सरु'  थामते  रहना

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