वक़्त के साथ
ऐसे रोज़ भी
ढल जाते हैं
यूँ तो उठते
हैं ईश्क़ के
तूफान दिल में
मगर एहतियात के दरिया
में जल जाते
हैं
इस बात से
बे-इंतेहाँ हैरानी
है मुझे
जाने कहाँ जानेवाले
आजकल जाते हैं
तदबीर क्या निकलेगी
मुश्क़िलों की यहाँ
कस्में वादे चाँद
सिक्कों में बदल
जाते हैं
तेरी यादों के जब फूल
महकते हैं दिल
में
ज़िंदगी के झोंके
छू के निकल
जाते हैं
राह-ए-शौक़
में मुश्क़िलों ने
हिम्मत सिवा दी
लोग क्यूँ ठोकरें खाकर
संभल जाते हैं
तू लाख पढ़
ले पोथियां तज़रबे
रखे हज़ार
ये दुनियाँ वाले 'सरु'
चाल तो चल
जाते हैं
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